पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१४३

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सप्तम प्रभाव १४५ भावार्थ-( सखी की उक्ति सखी प्रति ) हे सखी, गोकुल में गोपों की सभा में श्रीकृष्ण जी कांतियुक्त बैठे हुए थे। मानो चकोर के सुंदर चित्तों को हरण करके पूर्ण चंद्र शोभा दे रहा हो । उन्हें किसी ने कमल में ताजा जल भरकर और उसे उलटा करके दिया। न जाने क्यों उन्होंने उसे थोड़ी देर तक भावुकता के साथ देखकर और कली बनाकर लौटा दिया । गूढार्थ-नीरज नीर० - नायिका के कमलवत् नेत्र आपके विरह में आँसू बहा रहे हैं । कलिका करिकै० = जब कमल बंद होंगे (सूर्यास्त के समय) तब मिलूंगा। अलंकार-सूक्ष्म। सूचना--'कविप्रिया' में यही छंद सूक्ष्मालंकार के उदाहरण में दिया गया है। ( दोहा ) (२३७) राधा राधारमण के कहे जथामति हाव । ढिठई केसवराय की छमियो कबि कबिराव ।५७। इति श्रीमन्महाराजकुमार श्रीइंद्रजीतविरचितायां रसिकप्रियायां राधिकाकृष्ण हावभाववर्णनं नाम षष्ठः प्रभावः ।। सप्तम प्रभाव अथ अष्टनायिका-वर्णन-(दोहा) (२३८) ये सब जितनी नाइका, बरनी मति अनुसार । केसवदास बखानिय, ते सब आठ प्रकार ।१। (२३६) स्वाधिनपतिका, उत्कहीं, बासकसज्जा नाम । अभिसंधिता बखानिये, और खंडिता बाम ।२। शब्दार्थ-उत्कहीं = उत्कंठिता ही । अभिमंधिता = कलहांतरिता । बाम = स्त्री, नायिका। (२४०) केसव प्रोषितप्रेयसी लब्धाविप्र सु आनि । अष्टनायिका ये सकल अभिसारिका सु जानि ।३। शब्दार्थ-प्रोषित = प्रोषितपतिका । लब्धा=विप्रलब्धा । प्रानि = अन्य । ५७-प्रति-बिधि । राय-दास । छमियो-छमिजो । १-बखानिये-बखानिजे । ते सब-बुधिबल । २–स्वाधिन--स्वाधिन- पतिका, उत्कला स्वाधीनपतिका उत्कंठा, स्वाधीनपति उत्कंठिता। ३-स मानि-सु जान, सु मान । सकल-सबै । सु जानि सु बखान, सु जान । -