पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१५३

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१५६ रसिकप्रिया आपने. चरित्रनि के चित्रत बिचित्र चित्र, चित्रिनीज्यों सोहै साथ पुत्रिका गुवाल की। चंद्र के समान चारु चाय सों चढ़ाएँ फिरै, करिकै तिहारे मृगनैननि की पालकी। कीजै पयपान अरु रखै पान प्रानप्यारे, आई है जु आई अलबेली ग्वालि काल की ।२८। शब्दार्थ-अतुराई-ग्रातुरता, तत्परता। न ढुरति = छिपती नहीं। दुति = द्युति। चित्रत -बनाती । पुत्रिका-पुत्री। गुवाल-रवाला। चारु - सुंदर। चाय =प्रेम । पयपान = जलपान । काल की-कलवाली, जिसकी चर्चा कल मैंने की थी, या आपने जिसे कल देखा था । प्रच्छन्न गर्वाभिसारिका, यथा-(सवैया ) (२६६) लाडिली लीली कलोरी लुरी कहँ लाल लुके कहँ अँग लगाइकै । आजु तौ केसव कैसहूँ लेख्वै लागन देति न देखहु आइकै । बेगि चलौ उठि आई लिवावन दौरि अकेलियै हौं अकुलाइकै । भूलिहू गोकुल गाँव में गोबिंद कीजै गरूर न गाइ चराइकै ॥२६॥ शब्दार्थ-लाडिली:- प्यारी । लीली = नीली, श्यामवर्ण की । कलोरी 3 बिना बरदाई या ब्याई जवान गाय । लुरी= नवप्रसवा, थोड़े दिन की ब्याई हुई। कह = को । लाल = हे कृष्ण । लुके = छिपे । कहँ = कहाँ । अंग लगाइकै = अपने अंग लगाकर, अपने हाथ की करके । लेरुवै - बछड़े को । लागन देति न =थन छूने ( पीने ) नहीं देती। अकेलिय।। अकेले ही । गोविंद = गऊ के स्वामी गोपालक । गरूर-गुमान, अभिमान । प्रकाश गर्वाभिसारिका, यथा ---( कबित्त) (२६७) चंदन चढ़ाइ चारु अंबर के उर हारु, सुमन-सिँगार सोहै आनँद के कंद ज्यों। वारौ कोरि रतिनाथ बीन में बजावै गाथ, मृगज मराल साथ पानी जगबंद ज्यों। चौंकि चौंकि चकई सी सौतिन की दूती चलीं, सौंतें भई दीनी अरविंद दुतमिंद ज्यों। तिमिर बियोग भूले लोचन चकोर फूले, आई ब्रजचंद चलि चंदावलि चंद ज्यों ।३०। २५- अतुराई-पातुराई । दुरति-दुराई जात । के-को । चित्र-गति । चढ़ाएँ०-चढ़ी फिरति । प्रानप्यारे-प्राननाथ । अलबेली-अनबोली। २६- सवैया-कमल छंदु । कह-कहु । कह-कहाँ । अंग-प्रांग, प्रांगि। देखहु - कैसहूँ। उठि-धलि । लिवावन-बुलावन । अकेलिये-अके लियौ। ३०-- के उर-को उर । कोरि-क्रोरि । बीन-बीना । मृगज-मृगय । दीनी-दीन । इति-गति ।