पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१५२

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सप्तम प्रभाव १५४ प्रच्छन्न प्रेमाभिसारिका, यथा -(कबित्त) (२६४) लीनो हम मोल अनबोलें आई जान्यो मोह, मोहिं घनस्याम धनमाला बोलि लाई है। देख्यो ? है दुख जहाँ देहऊ न देखी परै, देखी कैसे बाट केसौ दामिनी दिखाई है। ऊँचे नीचे बीच-कीच कंटकनि परे पग, साहस गयंद गति अति सुखदाई है। भारी भयकारी निसि निपट अकेली तुम, नाहीं प्राननाथ साथ प्रेम जु सहाई है ।२७) शब्दार्थ-हम = हमको। अनबोलें = विना बुलाए । घनस्याम = हे कृष्ण । धनमाला = काले बादलों का समूह । बोलि = बुलाकर । बाट = मार्ग। साहस = हिम्मत । गयंद = हाथी । गति=चाल । सहाई = सहायक । भावार्थ-( नायक और नायिका का संवाद ) ( नायक ) तुमने तो मुझे मोल ही ले लिया है ? क्योंकि बिना बुलाए ही आईं। तुम्हारा प्रेम मैंने जान लिया। (नायिका)-हे घनश्याम, मुझे तो काले बादलों की पंक्ति बुलाकर लाई है। (नायक) -तब तो तुमने दुख देखा होगा (तुम्हें बड़ा कष्ट हुआ होगा)। (नायिका)-जहाँ ! जिस अँधेरी रात्रि में ) शरीर भी दिखाई नहीं देता, वहाँ दुख क्या दिखाई देगा। ( नायक )-तो फिर उस में तुमते रास्ता कैसे देखा ? ( नायिका )-मार्ग तो बिजली ( के प्रकाश ) ने दिखा दिया । (नायक )-फिर भी चढ़ाव, उतार, कीचड़ और काँटों पर पैर पड़े होंगे जिससे कष्ट मिला होगा। (नायिका)-साहस रूपी हाथी की सुखदायी चाल से प्राई हूँ ( कष्ट मिलने का प्रश्न ही नहीं उठता)। (नायक)-महा भयंकर (डरावनी) रात्रि में भला तुम अकेली कैसे आईं। ( नायिका ) हे प्राणनाथ, साथ में आपका प्रेम मेरा सहायक जो था । प्रकाश प्रेमाभिसारिका, यथा -( कवित्त) (२६५) नैननि की अतुराई बैननि की चतुराई, गात की गुराई न दुरति दुति चाल की। --लीनो-लीने । हम-हमै । भाई-पाए। मोह-माहि, नेह । लाई- ल्याई। देखी कैसे-दीखो कैसे । परे-पीड़े । गति०-की सी गति सुखदाई । भयकारी-यह कारी । जु-जो । २६--