पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१६५

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१६८ रसिकप्रिया दंड, भेद । साम = प्रियमिलन, दान-आनंददान, भेद = सखी को मिला लेना, दंड - कुलकानि का नाश ये चार रथ हैं। गुण या शृंगार सोलह होते हैं- उबटन, स्नान, वस्त्रधारण, केश सँवारना, कज्जल, सिंदूर, महावर, तिलक, तिल (गोदनाबिंदु), मेंहदी, अरगजा-लेप, आभूषण, पुष्पधारण, तांबूल और मिस्सी । (३) प्रच्छन्न और प्रकाश भेद से विरह एवम् विनोद के दो दो रूप होंगे । अतः हाथी चार हुए । इसी प्रकार चितवन संकोच और सोच के प्रकाश प्रच्छन्न भेद से चार प्रकार की हुई । अतः घोड़े चार हुए। विरह एवम् विनोद के मनोरथ के दो रथ भी इसी प्रकार चार हुए । इन सबके गुण सोलह हुए। श्रीकृष्णज की प्रच्छन्न चिता, यथा - (कवित्त) (२६६) केसौदास सकल सुबास को निवास तन, कहि कब भृकुटिबिलास त्रास छोलि है। कैसो है सुदिन बड़भागी अनुरागी जिहिं, मेरो हग वाके संग लागि लागि डोलि है। ऐसी हहै ईस पुनि आपने कटाछ मृग- मद घनसार सम मेरे उर भोलि है। दीप के समीप पुनि दीपति बिलोकि वह, चित्र की सी पूतरी सु क्योंहूँ हँसि बोलि है ।१८। -सुबास = सुगंध । निवास = वासस्थान । तन-शरीर। छोलिह - छील डालेगी, दूर कर देगी। भृकुटि० = अपनी भौंहों की भंगिमा से त्रास दूर करेगी । मृगमद = कस्तूरी। घनसार = कपूर । भोलि = डालेगी। भावार्थ-(नायक की उक्ति अपने मन से ) ( हे मन ) जिसका शरीर ही समस्त सुगंधों का वासस्थान है कह तो वह कब अपने भृकुटि-विलास से मेरा त्रास दूर करेगी ? वह भाग्यशाली प्रेम से भरा सुदिन कब होगा जब मेरे नेत्र उसके अनुगामी हो होकर चलेंगे। हे ईश्वर, क्या ऐसा होगा कि वह कस्तूरी एवम् कपूर के समान अपने कटाक्ष मेरे हृदय में डालेगी। क्या ऐसा दिन कभी आएगा जब किसी दीपक के पास रात में खड़ी उस चित्र कीपुतली सी नायिका की दीप्ति दिखाई पड़ेगी और किसी प्रकार वह हँसकर मुझसे बोलेगी? श्रीकृष्णजू की प्रकाश चिता, यथा-(सवैया ) (३००) राधिका को जननी को जनी कोऊ क्योंहूँ स्वयंबर बात जनावै । देवकुमार से गोपकुमारनि मान दै दै बृषभान बुलावै । केसव कैसहु बाल भली वह माल सु मेरे हिये पहिरावै । तोहि सखी समदै सँग वाके सु क्यों यह बात सबै बनि आवै ।१६। १८-तन-मनु । जिहि-जब । मेरो-अंग, मेरी बीर । संग-संग संग। पुनि-निसि । १६-कों-सों । जनावै-चलावै । शब्दार्थ-