5 अष्टम प्रभाव १६६ शब्दार्थ-(श्रीकृष्ण का वचन सखी से ) जनी = दासी। राधिका = राधिका की माता को कोई इस बात के लिए प्रेरित करे कि वह राधिका का स्वयंवर रचे । देवकुमार = देवपुत्र, देवता । देवकुमार० = देवताओं के समान अच्छे अच्छे कुलवाले गोपों को उस स्वयंवर में वरण के लिए स्वयम् वृषभानु ( राधिका के पिता) आमंत्रित करें ( यह आमंत्रण मुझे भी मिले और मैं भी जाऊँ)। बाल = बाला, नायिका, राधिका । समदै = भेंट करे। कैसहु० उस. स्वयंवर के समारोह में वह मेरे गले में जयमाल डाले। तोहि हे सखी, फिर बिदाई के समय भेंट में तुझे भी उसके साथ अर्पित करें। ये सब संयोग किस प्रकार हों। अथ गुणकथन-लक्षण--( दोहा ) (३०१) जहँ गुनगन गुनि देहदुति, बरनत बचन बिसेषि । ताकहँ जानहु गुनकथन, मनमथ-मथन सु लेखि ॥२०॥ शब्दार्थ-~-गुनि स्मरण करके । देह = अंगदीप्ति, सौंदर्य । मनमथ- मथन = कामव्यथा का विशेष उल्लेख करके । श्रीराधिकाजू को प्रच्छन्न गुणकथन, यथा -( कबित्त ) (३०२) कीरति सहित नित केसब कुँवर कान्ह, केवल अकीरति नृपति सोम मानिये । छुवत चंपकपात कुँमिलात जात तन, अति हरषित गात हरिजू को जानिये । कोमल सुबासजुत प्यारे के परम पानि, कंटककलित नील नलिन बखानिये। लोचन बिसाल चारु मदनगुपालजू के, मदन-सरनि दरसन-रस हानियै ।२१॥ शब्दार्थ-कान्ह = श्रीकृष्ण । सोम = चंद्रमा । अकीरति = क्षीण होना, कलंकयुक्त होना, दिन में मलिन रहना प्रादि । परम-विशाल । पानि (सं० पाणि ) हाथ । भावार्थ-(नायिका की उक्ति आत्मगत) कुँवर कन्हैया तो सर्वदा कीर्ति. सहित रहते हैं पर सोम राजा ( चंद्रमा) केवल अकीर्तिसहित ( अतः दोनो की समता क्या ? )। श्रीकृष्ण का शरीर (सदा) प्रफुल्ल रहता है पर चंपक पुष्प के दल तो स्पर्श मात्र से कुम्हला जाते हैं ( इसलिए चंपक उनके शरीर के वर्ण की बराबरी नहीं कर सकता)। प्रियतम ( श्रीकृष्ण ) के विशाल २०-गुनि-मनि। ताक]०-तासों कहिये ।, मथन-मनु से लेखि । २१-सुबास-सुबाहु । रस-हित ।
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