पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१७८

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अष्टम प्रभाव १८१ श्रीराधिकाजू की प्रच्छन्न व्याधि, यथा -( सवैया) (३२७) बेनु तन्यो उनि, बैन ते बोलौ न बोल, बिलोकत बुद्धि भगी है। वे न सुनै समुझं तूं न बातहि प्रेत लग्यो किधौं प्रीति जगी है। केसव वे तुहि तोहि र रट तोहि इतै उन्हीं की लगी है। वे भर्ख पान न,पान्यौ न तूं सु ः कान्ह ठगे कि तूं कान्ह ठगी है।४६॥ शब्दाथ-बेनु = बाँसुरी । बैन - ( वदन, बयण, बैन ) मुख । बोल 3 बात । पान्यो-पानी भी। भावार्थ-( सखी की उक्ति नायिका से ) उधर उन्होंने (श्रीकृष्ण ने) तो बंशी बजाना छोड़ दिया है, इधर तेरे मुख से बोल नहीं निकलते । ऐसी स्थिति को देखने ( और उस पर विचार करने से ) तो बुद्धि भाग खड़ी होती है । कुछ समझ में ही नहीं आता कि आखिर हो क्या गया है, न जाने ये कैसी चेष्टाएँ करते हैं ( यह तो स्वयम् बोलने की, मुख का व्यापार स्वयम् करने की बात हुई)। उधर वे सुनने पर भी किसी की बातें नहीं समझते और तू भी उसी प्रकार किसी की बातें सुनती समझती नहीं। यह ( तुम दोनो को ) प्रेत लगा है या प्रीति जगी है ? (ऐसी चेष्टाएँ तो प्रेत लगने पर ही हुआ करती हैं)। उधर वे तुझे केवल तुझे ही रट रहे हैं इधर तू उन्हें ही रट रही हैं, उन्होंने पान खाना छोड़ दिया तूने पानी पीना छोड़ दिया, पता नहीं केवल उन्हें श्रीकृष्ण को तूने ठगा है या उन्होंने तुझे ठगा है । श्रीकृष्जू की प्रकाश व्याधि, यथा-( सवैया ) (३२८) ह्वाँ उनके तनताप तें तापियै, ह्याँ इनके उपचार जडैयै । ह्वाँ उनके उडि जैये उसासनि, ह्याँ इनके अँसुवानि अन्हैयै । केसव वै नँदलालन ये बृषभान-लली पै निदान न पैयै । एकहि बेर दुहूँनि कहा भयो माई री तूं चलि देखन जैयै ।४७) शब्दार्थ--ताप = जलन । तापिय = तपिए, जलिए। ह्वाँ = वहाँ । ह्याँ = यहाँ । उपचार जडेय = ठंढे ठंढे उपचारों से जाड़ा खाना पड़ता है । निदान - भेद, कारण। भावार्थ-( सखी का वचन सखी से ) वहाँ तो उन (नायक) के शरीर की जलन से जलना पड़ता है और यहां आने पर इनके ताप को दूर करनेवाले शीतल उपचारों की शीतलता से जाड़ा खाना पड़ता है। वहाँ उनकी ( बड़ी बड़ी और तीव्र ) उसासों से उड़ जाना पड़ता है और यहाँ इनके आंसुओं ( की धारा में ) स्नान करना पड़ता है ( बह जाना पड़ता है)। वे तो नंद ४६-नु-बैन । बैन-बीन । बोलो बोले, बोल्यो । बोल-बैन । वे न- बैन । तुहि-तोहि तोहो । तें-तौ । ४७-हा-४ ताप तें-तापनि । इनके० -इनके तन तो । माई-प्रालि । रीतू'-यहै । देखन०-देखि डरैयै ।