१६४ रसिकप्रिया मनाने पर भी मान नहीं छोड़ा। जब प्रिय भी उसके न मानने पर मान कर बैठा तब नायिका नायक को मना लाने के लिए उसी अंतरंग सखी को भेजने लगी । उस समय सखी ने नायिका से कहा कि मैंने पहले ही कहा था कि तुझे ऐसा करना पड़ेगा। सखी नायिका से ही कह रही है कि मैंने पहले तुझसे ऐसा कहा था न ! ) हे कमल से सरस मुखवाली, मैंने बारंबार मना किया था कि मान मत कर, दर्पण लेकर अपना मुख देख ले, तेरा ऐसा सुंदर मुख मुरझा जायगा । शोभा के निहोरे से भी तू ठीक ठीक देखती नहीं है । (अर्थात् जब यह कहा जाता है कि ऐसा सुंदर मुख क्रोध से लाल पीला करने योग्य नहीं है तब भी तू भौंहें सीधी नहीं करती है ) । सब सखियां मनाकर हार गई, अब किसी का क्या दोष है। सुख का भी निहोरा तुझे दिया गया था कि मान करने से तुझे सुख न रह जायगा पर उसे भी तूने नहीं माना । यह तूने अच्छा ही किया। क्योंकि मैं जानती थी कि यदि तू सुख से भी मुख मोड़ लेगी तो मुझसे कभी न कभी नायक को मनाने का आग्रह करना ही पड़ेगा । (मैंने कहा न था कि) में प्रार्थना करती हूँ प्रिय के मनाने पर मान जा नहीं तो प्रेम के विवश करने पर तू मुझे ही निहोरेगी (नायक को मना लाने का भाग्रह करेगी)। सूचना-(१) श्रीकृष्ण मनाकर हार गए हैं, इसलिए मध्यममान है। अंतरंग सखी ही जानती है इसलिए प्रच्छन्न है। (२) यह छंद 'कविप्रिया' में 'मान विरह' के उदाहरण में दिया गया है (कविप्रिया, ८/४०) श्रीकृष्ण को प्रकाश मध्यममान, यथा -( सवैया) (३५८) मानहि मान ते मानिनि केसव मानस तें कछु मान टरैगो । मान रहे सुजु मानै नहीं परिमान नखें अभिमान भरेगो। हैहै सहेली समान तबै जब सौतिन में अपमान करेगो पु मनावत मानहि री, बहुरथो जु मनावन तोहि परैगो ।२०। शब्दार्थ-मानस-मनुष्य । परिमान नखें = सीमा का उल्लंघन करने पर । भावार्थ-(बहिरंग सखी की उक्ति नायिका से)हे सखी, मानवती नायिका आदर करने से मानती है (यदि एसा नहीं है तो) क्या किसी मनुष्य के हटाने से कहीं मान हट सकता है ? जो मनाने पर मानता नहीं उसके हाथ मान ही मान रह जाता है । सीमा के पार जाने पर तो स्वयम् नायक भी अभिमान (मात्मसंमान ) से भर उठता है ( वह भी चिढ़ जाता है)। फिर जब वह सौतों में (तुम्हारा) अनादर करने लगेगा तो सखी के ही समान रह जाओगी। ( मैंने पहले ही कहा था कि ) स्वयम् प्रिय मना रहा है मान जामो, नहीं तो उलटे तुम्हीं को मनाना पड़ेगा। २०-टरैगो-हरैगो। रहै है री। मान-मानौ । ह्वहैं-हहो ।
पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१९०
दिखावट