पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/१९१

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दशम प्रभाव १६५ सूचना-यहां भी प्रकरण पिछले छंद की ही भांति है। सखी बहिरंग है अतः 'प्रकाश' मान है। ( दोहा ) (३४) राधा राधा-रवन के, बरने मान समान । तिनको मान मनाइबो, कहियत सुनौ सुजान ॥२१॥ इति श्रीमन्महाराजकुमारइंद्रजीतविरचितायां रसिकप्रियायां विप्रलंभशृंगार मानवर्णनं नाम नवमः प्रभावः । । दशम प्रभाव अथ मानमोचन-लक्षण-( दोहा) (३६०) मान तजहिं प्रीतम प्रिया, कहि केसव करि प्रीति । बरनि सुनाऊँ सुनहु सब, मैं जु सुनी षट रीति ।। भावार्थ-नायक और नायिका प्रेमपूर्वक मिलकर मान त्याग देते हैं। इसके छह प्रकार हैं। (३६१) साम दान भनि भेद पुनि, प्रनति उपेच्छा मानि । पुनि प्रसंगविध्वंस अरु, दंड होइ रस-हानि ।। भावार्थ-वे छह प्रकार ये हैं—साम, दान, भेद, प्रणति, उपेक्षा और प्रसंगविध्वंस । दंड में रस नहीं रह जाता इसलिए वह वर्जित है। अथ साम-लक्षण-( दोहा ) (३६२) ज्यों क्योहूँ मन मोहिये, छूटि जाइ जहँ मान । सोई साम उपाय कहि, केसवदास बखान ।। शब्दार्थ-ज्यों-जिस किसी प्रकार से । श्रीराधिकाजू को साम उपाय, यथा-( सवैया ) (३६३) केसवदास सदा किये आस रहे सुख की दुख ताहि न दीजे । ताहू सों रोष नमानियै मानिनि भूलिहुँ आपनो मानि सु लीजै। हौं तुमहीं तुम हौं सुनि सुंदरि मूरति द्वै जिय एकहीं जीजै । मान है भेद को मूल महा अपने सहुँ सो सपनेहुँ न कीजै ।४। २१-बरने मान समान-कहे जथामति मान । सुनौ-सुनहु । १-तजहि-तजें । सुनहु०-सो सबै । २-दान०-दामनरु । पुनि-अरु, और। अल-पुनि । होइ-होहि । ३-क्योंहूं-त्यों करि । छुटि-मूलि । कहि-कबि । ४–ताहू-केहूँ । मूलिहु-भुलि सु । सु-जु । हो तुमहीं- तुम हो तुम वै। पने-अपनेहुँन सों। सपनेहुन-सपने नहिं ।