२०६ रसिकप्रिया सयान- सूचना-यहाँ सखी ने कामोद्दीपन का भय दिखाकर मानमोचन किया हैं, अतः प्रसंगविध्वंस है। अलंकार-शुद्धापह्नति । श्रीकृष्णजू को प्रसंगविध्वंस, यथा-(कबित्त) (३८४) कोकनि की कारिका कहति काहू सारिका सों, दुरि दुरि हित चित चौगुनो चढ़ायो है । सूकि रही सकुचनि बापुरी सुकी तो, कहि काहू सो सके न देह दुखनि डढायो है। उठि चलौ न्याउ कीजे अब के मनाइ दीजै, नीकें ही में केसौदास कलह बढ़ायो है। मानत न एते पर उलटि मनावै वह, ऐसो ही सयान स्याम सुकहि पढ़ायो ।२५॥ शब्दार्थ-कोकन की कारिका = कोकशास्त्र के सिद्धांत, कामशास्त्र की बातें । सारिका= मैना। सूकि रही = सूखती जा रही है। बापुरी3 बेचारी । सुकी-सुग्गी। न्याउ कीजे = फैसला कर दीजिए, झगड़ा निपटा दीजिए । नीकें ही में=मच्छे भले में। कलह-झगड़ा । चतुराई (की पद्धति )। भावार्थ-(सखी की उक्ति नायक से) हे श्याम, मापने सुग्गे को न जाने कैसी चतुराई की बातें सिखा रखी हैं कि वह सुग्गी से मान कर बैठा है, मानता ही नहीं। वह किसी मैना से कोकशास्त्र की बातें कर रहा था । छिप छिपकर उसने प्रेम मौर चित्त दोनो ही चौगुने चढ़ा लिए हैं ( उसका प्रेम भी बढ़ गया है और मन भी) । बेचारी सुग्गी (उसकी कथा सुन सुनकर और उसकी करतूत देख देखकर) मारे संकोच के सूखती जा रही है। वह किसी से इस बात को कह नहीं सकती, उसका शरीर दुखों से जल रहा है। इतनी ढिठाई करने पर भी सुग्गा मानता नहीं है ( वही मान कर बैठा है ) और सुग्गी ही उलटे उसे मना रही है। प्राप चलकर दोनो के झगड़े का निपटारा कर दीजिए। थोड़े के लिए उसने इतना झगड़ा बढ़ा रखा है । सूचना-शुक पौर शुकी के झगड़े के कारण नायक को भय हुआ और उसका मान छूट गया,यही प्रसंगविध्वंस है । यहाँ शुक के चरित्र से श्रीकृष्ण का चरित्र भी मिलता है अतः उपेक्षा की संभावना होती है। पर दोनो में २५-चढ़ायो-बढ़ायो । सूफि-सोधि । नीकें ही-नेक ही। उढ़ावो- -उठायो, बढ़ायो । वह-बरु ।
पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२०२
दिखावट