पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२०१

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दशम प्रभाव २०५ भावार्थ-(सखी की उक्ति नायक प्रति) हे कृष्ण, इस निर्लज्ज भौंरे का चालचलन नहीं देखते, इसे दिनरात केतकी के रंगढंग अच्छे लगते हैं, चमेली इसके मन में बसती है और कमलिनी नेत्रों में। यह माधवी का मधु. ( मकरंद, पुष्परस) पीता है, देखो इस अंधे को कुछ सूझता भी नहीं, सेवती का सेवन करने की इच्छा करते करते इसने चंपे की कली का भी सेवन कर लिया (यद्यपि भौंरे चंपे के पास नहीं जाते, पर यह उसके पास भी मर्यादा को छोड़कर चला गया )। कहिए आप लज्जित क्यों हो रहे हैं, इस प्रकार तो मलिन मनवाले व्यक्ति लज्जित होते हैं। मैं तो अभी और कहनेवाली हूँ। देखिए वह निर्लज्ज अपनी भ्रमरी को साथ लिए मालती से मिलने आया है। सूचना--भ्रमर का वर्णन उपेक्षा है । 'काहे को लजात' से स्पष्ट है कि श्रीकृष्ण इस वर्णन को अपने चरित्र से मिलता पाकर मान छोड़कर संकुचितः हो रहे हैं। अलंकार-अन्योक्ति ( अथवा अप्पय दीक्षित का प्रस्तुतांकुर ) । अथ प्रसंगविध्वंस-लक्षण-(दोहा) (३८२) उपजि परै भय चित्तभ्रम, छूटि जाइ जहँ मान । सो प्रसंगविध्वंस कबि केसवदास बखान ॥२३॥ भावार्थ -भय के कारण चित्तविभ्रम होकर जहाँ मान छूट जाय वहाँ प्रसंगविध्वंस उपाय होता है । श्रीराधिकाजू को प्रसंगविध्वंस, यथा-(सवैया) (३८३) केकी न केसव काम के किंकर बोलत डोलत देत दुहाई । कामनिसा यह कामिनि कोऊ रिसाइगि तासहुँ ? है रिसाई । गाजति नाहिंन मेघघटा यह बाजति डौंडी सखी सुखदाई । भोर भएँ फिरि कीबौ अबोलौ सु बोलौ अबै बलि बोलि कन्हाई २४ शब्दार्थ-केकी=मोर । किंकर = सेबक । कोऊ रिसाइगी = यदि कोई नायिका मान करेगी। तासहुँ ह्व है रिसाई = उस पर (काम महाराज ) क्रोध करेंगे। गाजत = गरजते हैं । डौंडी डुग्गी ( कामदेव की )। कीबो- करना । अबोलौ= मौन, मान । बलि 3Dहे नायिका । बोलि = बुलवाकर । भावार्थ-(सखी की उक्ति नायिका प्रति) हे सखी ये मयूर नहीं प्रत्युत काम के सेवक बोल रहे हैं, जो घूम घूमकर ( काम की.) दुहाई दे रहे हैं कि इस कामरात्रि में यदि कोई कामिनी मान करेगी तो उस पर महाराज काम- देव रुष्ट होंगे। यह बादल की घटा नहीं गरज रही है, सुखदायी ( काम की): डुग्गी बज रही है। इसलिए, सबेरा होने पर फिर मौन ग्रहण कर लेना इस समय तो कृष्ण को बुलवाकर उन्हें इस (राजघोषणा) का समाचार सुना दो। २३-छूटि--भूलि । कबि-कहि । २४-तासहु-ताकहुँ । भएँ- भयो