पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२१४

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. २१८ रसिकप्रिया बदन उघारतही 'मदन-सुयोधनहीं, द्रौपदी ज्यों नाममुख तेरो हो ररति है ।१६।। भावार्थ-कुवर = श्रीकृष्ण । वृषभानु की कुवरि = राधिका । देवता देवी। बिहरति है-बिहार करती है । कमला = लक्ष्मी । कमलाग्रजा = लक्ष्मी की बड़ी बहन, दरिद्रा । काली = काली देवी ( इन्हें केतकी का फूल नहीं चढ़ता, यह पौराणिक मत है)। निसिचर राक्षस,रात्रि में चलनेवाला (चंद्रमा का विशेषण ) । बदन = शरीर। उधारतहीं = खोलने का प्रयत्न करते ही। मदन = काम रूपी । सुयोधनहीं = दुर्योधन के द्वारा । ररति = रटती है । अलंकार-भिन्नधर्मा मालोपमा । सूचना-(१) दरिद्रा को 'कमलाग्रजा' कहते हैं। पर कई प्रतियों में 'कमलानुजा पाठ ही मिलता है । वह केवल प्रमाद जान पड़ता है । (२) कमलों से वह इसलिए डरती है कि उसे शोभा नहीं भाती । पुनर्यथा-(कवित्त) (४०६) भौरिनी ज्यों मैंवत रहति बन बीथिकानि, हंसिनी ज्यों मृदुल मृनालिका बहति है। पीउ पीउ रटति रहति चित चातकी ज्यों, चंद चितै चकई ज्यों चुप ह रहति है। हरिनी ज्यों हेरति न केसरि के काननहि, केका सुनि ब्यालीज्यों बिलानहीं चहति है। केसव कुँवर कान्ह बिरह तिहारे ऐसी सूरति न राधिका की मूरति गहति है ।१७। शब्दार्थ-भंवत रहति = घूमती ही रहती है । वोथिकानि = गलियों में । मृनालिका = कमलनाल । बहति है=धारण करती है (जैसे हंसिनी मृणाल लेकर उसे खेलते खेलते तोड़ डालती है वैसे यह भी उसे लेकर तोड़ डालती है)। हेरति न नहीं देखती । केसरि के काननहि-सिंह के वन को (हरिणी के पक्ष में); केसरवाले वन को ( नायिका के पक्ष में )। केका = मोर की वाणी । ब्याली = सपिणी । बिलानहीं चहति है = बिलों को ही देखने लगती है १६-सखी की पत्री-श्रीराधिकाजू की प्रकाश पत्री,प्रिया को विरहनिवेदन। माजु-बन । कहूँ-कान्ह । दिन-ठौर । डरति-जरति, दुरति । रुचै-सूच। मुख तिन-मुखचंद, चंदमुख ! जरति-रति । १७भौरिनी०-भौंरि ज्यों भवति है भवन । बहति-चहति । काननहि-कानन को। चहति-कहति ।