पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२१७

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द्वादश प्रभाव २२१: हौं सिखऊँ सुखदै सिख तोहि तें भौंह चढ़ाइ कै डीठि अनैठी। को न लड़ती सरूप न काहि तुहीं कछु जाति अकासहि ऐंठी।३। शब्दार्थ-मिस बहाने से। घर ही = घर में डाल रखेगी, बाहर न निकलने देगी। सुखदै = हितकारी । अनैठी - अनिष्ट की, तनेनी की। लड़ती- दुलारी । सरूप = सुदर । भावार्थ = (धात्री की उक्ति नायिका प्रति ) तू शतरंज खेलने का बहाना करके रातदिन मोहन के साथ बैठी रहती है । यदि कहीं तेरी माता सुन लेगी तो फिर घर में डाल रखेगी (बाहर फटकने भी न देगी) । मैं तो तुझे हितकर शिक्षा देती हूँ और तू उलटे भौंहैं चढ़ाकर मेरे ही ऊपर आँखें तनेनी कर रही है । कौन लाड़-प्यार से पली दुलारी लड़की नहीं है, कौन रूपवती नहीं है, पर तू ही कुछ ऐंठकर आकाश में चढ़ी जा रही है (सभी लाड़िली और सुदर होती हैं, पर ऐसे ऐंठते तो किसी को न देखा )। सूचना-'लड़ती' कहने से यह धाय की उक्ति मानी जायगी। धाइ को वचन कृष्ण सों, यथा-(कबित्त) (४१५) थोरी सी सुदेस बैस दीरघ नयन केस, गौराजू सी गोरी भोरी भवन की सारी सी। साँचे की सी ढारी अति सूछम सुढ़ार कटि, केसौदास अंग अंग भाँइकै उतारी सी। सोंधे कैसी सोंधी, देह सुधा सों सुधारी पाइ घारी देवलोक तें कि सिंधु तें उधारी सी। आजु यासों हँसि खेलि बोलि चालि लेहु लाल, कालि ऐसी ग्वालि लाऊँ काम की कुमारी सी।४। शब्दार्थ-थोरी = छोटी । सुदेस = बढ़िया । बैस = ( वयस् ) उम्र। दीरघ % ( दीर्घ ) विशाल, लंबे । गौरा = पार्वती। भोरी = भोली-भाली । भव = महादेव । सारी = पत्नी की छोटी बहन, पार्वती की छोटी बहन । सुढार = उत्तम, चढ़ाव-उतारवाली । भाँइकै = खराद पर चढ़ाकर खरादी हुई सुडौल । सोधे - सुगंध से सुवासित । पाइ धारी=प्राई, अवतीर्ण हुई। उधारी = उद्धृत की हुई, निकाली हुई। ऐसी-ऐसी ही । ग्वालि ग्वालिनी। ३-महतारी०-जननी तेरी राखिहै। सिखऊ-सिखवौं । सुखदै०-सिख दै सखि । भौंह०-दीठि । दोठि-भौंह । अनैठी-अमेठी, उमैठो । काहि-का पै। ४-बैस-बेष। गौराजू-गोरीजू , गोरजा। सुढार०-सुधारि कढ़ो। पाइ- पांउ । उधारी-उबारी । ग्वालि-बाल ।