पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२२८

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शब्दार्थ-आपुन द्वादश प्रभाव २३३ उन्हें भेटिए ) । केवल नेत्रों से हँस हँसकर कब तक बोलोगी? नायक से कभी हंसकर मुख से तो बोलो। सूचना-'सरदार' ने 'वनमाल' का अर्थ 'कुंज' किया है । चुरिहेरिन को वचन कृष्ण सों, यथा-( सवैया) (४३१) आपुन हजै दुखी दुख जाके सु ताहि कहा कबहूँ दुख दीजै । जा बिन और सुहाइ न केसव ताहि सुहाइ सु तौ सब कीजै । भाग बड़े जु रची तुमसों वह तो विझकाइ कहाँ कह लीजै । जौ रिस जाइ तौ जैयै मनावन तातो है दूध सिराइ तौ पीजै२०। जिसके दुख से स्वयम् लोग दुखी होते हैं । बिझ- काइ- तंग करके, चिढ़ाकर । तातो = गरम । सिराइ = ठंढा हो जाए। भावार्थ-जिसके दुख से कोई स्वयम् दुखी होता है क्या उसे भी वह कभी दुख देता है ? जिसके बिना और कुछ नहीं अच्छा लगता उसे जो कुछ अच्छा लगे वही करना चाहिए। बड़े भाग्य से तो उसने आपसे प्रेम किया, अब उसे तंग करने से आपको क्या मिलेगा? जब उसका रोष कुछ हटे तब, अापको मनाने जाना चाहिए ( ब्यथं चिढ़ाने के विचार से जाना ठीक नहीं)। अभी दूध गरम है, ठंढा हो जाए तब उसे पीजिए ( अभी वह क्रुद्ध है शांत हो जाय तब उसके पास जाइए)। अलंकार-लोकोक्ति । सुनारिन को वचन राधिका सों, यथा-( सवैया ) (४३२) लोल अमोल कटाछ कलोल अलौलिक सों पट भोलि कै फेरे। पानिप सों अति पैने रसाल बिसाल बने मनभावते मेरे केसव चीकने चौगुने चोखे चितै कै भए हरि न्यायनि चेरे । सोच-सकोचन श्रीरति-रोचन धीरज-मोचन लोचन तेरे ।२१। शब्दार्थ-लोल = चंचल । अमोल = अमूल्य । कलोल = क्रीड़ा । अलौ- लिक सों-अचंचलता से, स्थिरता से । प्रोलिक = प्राड़ करके । फेरे चलाए। पानिप = शोभा; पानी । पैने = लपलपाते । चीकने = सुदर। चौगुने = प्रत्य- धिक । चोखे = धारदार, तीक्ष्ण : न्यायनि = उचित ही; ठीक ही। चेरे = दास । सकोचन=( सोच को) कम करनेवाले । श्री = शोभा । रति-प्रीति । रोचन = बढानेवाले । मोचन = छुड़ानेवाले । २०-सु-हो । बड़े-बड़ो। बिझकाइ--बिरचाइ, बिरछाइ । कह--कहा ! रिस जाइ-रिसियाइ । तौ-त, न । २१-प्रोलि-खोलि । पैते-बैन बिसाल । भए--किए । मोचन-मोहन । .