पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२३

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( २३) परिमाण में अपनी ही काव्यसंपत्ति है। जहाँ कहीं संस्कृत के उदाहरणों का सहारा भी लिया गया है वहाँ भी नूतन भंगिमा या ग्रथन-कौशल है। इसलिए केशव के संबंध में यह सत्य न भूलना चाहिए कि उनमें कवित्व की सरसता मुक्तक के क्षेत्र के लिए पूरी थी। यदि कुछ विशेष प्रकार के विनियोग की प्रतिज्ञा उन्होंने न की होती तो रामचंद्रचंद्रिका में उनका कविरूप उतना आवृत्त न होता जितना शास्त्रस्थितिसंपादन के कारण हो गया है । विषय-विमर्श रसिकप्रिया में सोलह प्रभाव हैं। कदाचित् उसके षोडश शृंगार का ध्यान रखकर इतने प्रभाव रखे गए हैं—प्रत्येक शृंगार एक प्रभाव। श्रृंगार का प्रभाव ही पड़ता है। प्रत्येक प्रभाव के उपसंहार में आगे के प्रभाव का वर्ण्य विषय सूचित कर दिया गया है। प्रथम प्रभाव सबसे पहले गणेश की वंदना है । सामाजिक प्रवाह का ध्यान जैसा मानस में तुलसीदास ने रखा वैसा केशवदास ने अपने साहित्यिक ग्रंथों में । इसी से गणेश की वंदना सर्वप्रथम की। दूसरी वंदना श्रीकृष्ण की है, इन्हें नवरसमय कहने में केशव ने अधिक पांडित्य का प्रदर्शन किया है। हिंदी में शृंगार के प्रालंबन कृष्ण ही हो गए हैं, रस मात्र के प्रालंबन वे ही हैं । हिंदी की प्रथा के अनुसार इसके अनंतर आश्रयदाता या राजवंश का वर्णन है। निर्माणहेतु, स्थान और समय का उल्लेख । फिर नवरस का नामोल्लेख, उनमें शृंगार की श्रेष्ठता और श्रीकृष्ण के नायकत्व का कथन है । फिर शृंगार के संयोग-वियोग भेद और प्रकाश-प्रच्छन्न भेद हैं तथा श्रीकृष्ण और राधिका दोनों के चरित में इनके उदाहरण दिखाए गए हैं। द्वितीय प्रभाव में नायक-लक्षण कथित है। इसमें अनुकूलादि और उनके प्रकाश-प्रच्छन्न भेद के विस्तार से उदाहरण हैं। इस प्रभाव में 'पाठ गांठ' का वर्णन है । 'धृष्ट' के प्रसंग में वे लिखते हैं- मनसा बाचा कर्मना बिहॅसनि चितवनि लेखि । चलनि चातुरी प्रातुरी प्राठी गाँठ बिसेखि ॥२।१६ धृष्ट नायक सर्वात्मना धृष्ट होता है। उसकी आठ रूपों में अभिव्यक्ति होती है-मन, वचन, कर्म, बिहँसना, चितवन, चाल, चातुर्य, आतुरता । इसका मुहावरे के रूप में भी कवि ने प्रयोग कर दिया है- हैं हरि पाठहू गांठ अठाए । सामान्यतया 'पाठ गाँठ' का अर्थ 'शरीर की पाठ संधियाँ' किया जाता है, पर केशव ने उसका विशेष अर्थ रखा है ।