पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( २४ ) तृतीय प्रभाव में सबसे पहले नायिका-जाति का वर्णन कामसूत्र के प्राधार पर किया गया है । तत्त्वतः कामसूत्र और साहित्यसूत्र में अंतर है । साहित्य काम के उसी अंश को ग्रहण करता है जिसका संबंध मनोवृत्ति से होता है। इसलिए उसमें काम के उन विवरणों का उल्लेख जो शरीर से संबंध रखनेवाले हैं ग्राह्य नहीं हुए। साहित्य अपेक्षाकृत सूक्ष्म तत्त्व से संबंध रखता है। साहित्य में मन काम का पिता माना जाता है। इसलिए यों कह सकते हैं कि साहित्य बड़ों से अपना संबंध जोड़ता है, बाल-बच्चों से संलाप अपनी गंभीरता के विरुद्ध समझता है । केशव ने इतना अच्छा किया कि नायिकाओं के इन भेदों के साथ पुरुषों के भी भेद नहीं कहे। कदाचित् उनका लक्ष्य यह था कि पद्मिनी स्त्रियों का उल्लेख साहित्य में हुआ करता है इसलिए केवल स्वरूप- बोध के लिए उनका संक्षिप्त विवरण दे देना चाहिए । जाति-वर्णन के अनंतर मुग्धा का विचार है । नायिकाओं के प्रकारभेद कई दृष्टियों से किए जाते हैं । पद्मिनी आदि जातिभेद हैं । मुग्धा आदि अवस्थाभेद हैं । स्वकीया-परकीया आदि धर्मानुसार प्रकार हैं । मुग्धा के जो विशेषण नववधू आदि कहे गए हैं वे उसके प्रकार या भेद नहीं हैं। नायक के दक्ष आदि विशेषणों की भांति ये विशेषण हैं । इसमें मुग्धा के सुख का वर्णन भी इन्होंने किया है। वह किसी की शिक्षा से वांछित सुखात्मक व्यवहार नहीं करती। उसके साथ छल-बल अनुचित है । उससे सुख-शोभा को क्षति पहुँचती है (देखिए ३।२८) । इसमें मध्या और प्रौढ़ा के विशेषण या गुण मुग्धा की ही भाँति विस्तार से कथित हैं। पर बहिर्रति और अंतररति के उल्लेख काम- शास्त्र के ग्रंथों से ही उठाकर रखे गए हैं । मध्या में सुरतांत-वर्णन साहित्य में परंपरामुक्त होने के कारण कदाचित् रति के स्वरूपबोध के लिए आचार्यवर ने रख दिया है, जो साहित्य के सूक्ष्म स्वरूप के विरुद्ध है। इसी के अंतर्गत षोडश शृंगार भी कथित हैं, जो पारंपरिक हैं। चतुर्थ प्रभाव में 'दर्शन' का विचार है। इस संबंध में ध्यान देने योग्य यह है कि हिंदी में श्रवणदर्शन भी चल पड़ा, जब कि वह दर्शन से संबद्ध नहीं है । शृंगारतिलक में दोनों को पृथक् ही कहा गया है- दर्शनाच्छवरणाद्वापि कामातें भवतो यथा । साक्षाचित्रे तथा स्वप्ने तस्य स्याद्दर्शनं त्रिधा। देशे काले च भंग्यां च श्रवणं चास्य तद्यथा ॥ ११५०-५१ रुद्रट ने 'इंद्रजाल' * को भी 'वा' के साथ जोड़ा है-

  • साहित्यदर्पण में यह गृहीत हुआ है।