२३६ रसिकप्रिया तृप्ति हो गई ? (निश्चित जानिए कि ) राधिका को, माधे ही नेत्र से सही, 'बिना देखे सुख की इच्छा थोड़ी भी पूरी नहीं हो सकती। थदि कपूर के बदले में ( उजली उजला ) खरिया खा ली जाय तो क्या वह मुह को शीतल और सुवासित कर सकती है ? (तुम जो बहुतों से प्रेम कर रहे हो, इसमें ) हे ब्रजनाथ, केवल लालच ही हाथ रहेगा ( तृप्ति न होगी )। क्या कभी प्रोस चाटने से भी प्यास बुझती हैं ? अलंकार-लोकोक्ति । संन्यासिनि को वचन राधिका सों, यथा-( कबित्त ) (४३६) छुटै न छुटाएँ जब करिहौ धौं कैसी बात, केसौदास अनयास प्यास भूख भागिहै। खेल भूलि जाइगो जुड़ाइगो न चित्त चेति, कछु ना सुहाइगो री रैनिदिन जागिहै । ताते तें तपति दूनी सीरे ते सहस गुनी, उपजि परैगी उर ऐसी और ागि है। ऐंड सों ऐंडाइ जिन अंचल उड़ात, ओली, ओड़ति हौं काहू को जु डीठि उड़ि लागिहै ।२५॥ शब्दार्थः -अनयास = दिना परिश्रम, यों ही। खेल = क्रीड़ा । जुड़ाइगो नः = चित्त को शांति न मिलेगी। चेति - सावधान हो । ताते तें-उष्ण उपचारों से । सीरे: शीतल उपचारों से । और =अन्य, विलक्षण । ऐंड%D लटक, गर्व की मुद्रा। अोली-चादर, अंचल । अोली प्रोडति हों अंचल पसारकर प्रार्थना करती हूं। भावार्थ-देख तू ऐंड से ऐंड़ा मत, तेरा अंचल उड़ा ( हटा ) जा रहा है । मैं तुझसे आँचल पसारकर प्रार्थना करती हूँ (ऐसा मत कर )। किसी की दृष्टि प्राकर लग जाएगी। जब ( दृष्टि लग जाएगी और ) छुटाने से भी न छूटेगी तब क्या करेगी ? यों ही तेरी प्यास और भूख भाग जाएगी। क्रीड़ा भूल जाएगी, चित्त शांत न रहेगा, सावधान हो जा। फिर कुछ भी अच्छा न लगेगा। रातदिन तू जागती ही रहेगी। हृदय में ऐसी विलक्षण भाग उत्पन्न हो जायगी कि उष्ण उपचारों से तो दूनी होगी और शीतल उपचारों से सहस्रों गुनी हो जाया करेगी। २५-छुटै न-छुटिहै, न छूटिहै । बात-तब । भागिहै-लागिहै। न-री । और-एक । ओली-प्रति । मोडति हौं-जानति हैं । उड़ि-उर ।
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