पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२३३

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२३८ रसिकप्रिया पीला पड़ गया, है पर आपके मुख पर पांच भी नहीं-ऐसी नागरी से आप कैसे बुरे ढंग से प्रेम को निबाह रहे हैं ! )। अलंकार-व्याजनिंदा । पटइनि को वचन राधिका सों, यथा - सवैया ) (४३८) याही को मेरी गुसाइँनि मैं मिलई पहिले बतियाँ छलि छैलो । बातें मिलै अँखियाँ मिलई सखियान की आँखिनि पारि के ऐलो। आँखि मिले मुंह लागि रहै मन लेहु मिलै ब गहैं हम गैलो । मिले मन माई कहा करिहो मुहँ हो के मिलें तौ कियो मन मैलो।२७। शब्दार्थ-याही को= इसीलिए। छलि छैलो = छैल ( नायक ). को छलकर । बातें मिलै = बात हो जाने पर। अँखियां मिलई साक्षात्कार कराया। पारिकै = डालकर। ऐलों =धूल । मुह लागि रहै =मुह मिला, बातें करने का अवसर मिला। मन लेहु मिलै ब= अब उनके मन मिला न लो। गहें हम गैलो=हम अपनी गली पकड़ें । माई-हे सखी। भावार्थ-क्या इसी अवसर के लिए मैंने वे सब बातें की थीं ? मैंने नायक को छलकर तुम्हारी बातें मिलाई ( बातचीत पक्की की)। बातें मिल जाने पर सखियों की आंखों में धूल डालकर आँखें मिलाईं ( साक्षात्कार कराया)। आँखें मिलने पर मुंह मिला ( बातचीत का अवसर मिला अच्छा अब मन भी मिला लो, हम अपने रास्ते जाएँ। जब तुमने मुंह के मिलने पर ही मन इतना मैला कर लिया तब मन के मिल जाने पर न जाने क्या करोगी ( जिसने इतना उपकार किया उसके साथ यह व्यवहार ! )। सूचना-(१) मानमोचन कराना चाहती है। ( २ ) "मिलाने' का तारतम्य होने से पटइन भासित होती है। पुनः-( सवैया ) (४३६) गेह को नेह की देह की दीबे की भूषन की जिन मूख भगाई । मोहिं हँसी-दुख दोऊ दई तिनहीं सों जनावति है चतुराई । केसवदास बढ़ाई दई तो कहा भयो जाति-सुभाव न जाई । सोने सिँगारहु सोंधे चढ़ावहु पीतर की पितराई न जाई ।२८। शब्दार्थ-दीबे की = देने की, धन दे सकने की शक्ति। भूषन = आभू- षण । हंसी-आनंद । दई हे दैव । सोंधै = सुगंध । २७---लागि०-सों मिलिहै । लेहु-नेहु । मिले-माई मिले मन का । तो-तें, जो । २८-की-के।की-के। को-के। दो-दो को-के । भगाई- भराई । सबदाम-सबराइ । तो-सो । माति-जान । बड़ाबहु-विनायन । -