पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२४६

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त्रयोदश प्रभाव २४६ 1 कृष्ण को झुकिबो- सवैया) (४५८) तासो बसाइ कहा कहि केसव कामलता तरु तेंदु रई । बिधि की लिपि लोपो न जाइ जाइ अमोलिक लै मनि सीस भुजंग दई अपनो मुख देखहु प्रारसी लै पुनि बात कही परमान-लई । बृषभान-सुता पर और सुहागिल बाउ कहाँ लगि जीम गई ।१७ शब्दार्थ-तासों बसाइ कहा = उससे क्या वश चलता है ? कामलता = कामदेव की लता (राधिका)। तरु = वृक्ष। तेंदु = तेंदू । रई = अनुरक्त हुई । मेटि न० -- मिटाई नहीं जा सकती। अमोलिक = अमूल्य । भुजंग-सर्प; उपपति (परकीया नायिकाओं से प्रेम करनेवाला) । दई दी। परमान-लई3 प्रमाणयुक्त । सुहागिल = सौभाग्यवती, नायिका । बाउ कहाँ लगि जीभ गई = भला जीभ कहाँ तक गई है, आप कैसी बढ़ बढ़कर बातें करने लगे हैं । भावार्थ-इसमें क्या वश चल सकता है कि कामलता तेंदू के वृक्ष (नीरस, श्रीकृष्ण) से प्रेम करती है। ब्रह्मा का लिखा मिटाया तो जा नहीं सकता, देखो तो अमूल्य मणि ( मन ) लेकर भुजंग के सिर पर पटक दी (तुम्हारे ऐसे लंपट को मन सौंप दिया है। हाथ में दर्पण लेकर अपना मुंह तो देखो । बातें कहो तो प्रामाणिक कहो ( बेसिर पैर की बातें मत करो)। भला वृषभानु की पुत्री राधिका की और अन्य सौभाग्यवती स्त्रियों की चर्चा ही क्या, भला तुम्हारी जीभ कहाँ तक चढ़बढ़ गई है (कि ऐसी बातें बकते हो ) । ( नायक ने कदाचित् कह दिया है कि राधिका न मिलेंगी तो मुझे क्या नायिकाओं का टोटा है, इसी पर सखी फटकार रही है )। राधिका सों उराहनो-( कबित्त) (४५६ ) केसौदाम कौन बड़ो रूप, कुलकानि पै अनोखो एक तेरेही अनख उर श्रोलियै । आपनें सयान काहू मानसै न मानै तूं , गुमान के रिमान बैठि व्योम ब्योम डोलियै । ऐंड सों ऐंडाइ अति अंचल उड़ाइ ऐसी, छाँडि ऐंड बैंड चितवनि निरमोलियै । दीनो मन हाथ जिनि हीरा सो हरषि कै, ता हरि सों हरिननैनी हरेहूँ तो बोलियै ।१८। १७-तेंदु-तिदु । लिपि-गति । लोपी-मेटी । मालिक-दलोषित, अलो- किक । पुनि-कर । बाउ०-बारौ जहाँ । १८-१०-ही पै नोखो ।अनख-अनूप । काहू-कान्ह । बैठि-चढ़ी। ऐडाइ-ऐडाति । उड़ाइ- उड़ात । जिनि-जिहि । के ता-ऐसे । तौ-न।