पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रतीकानुक्रमणी २८७ दरस रमन ॥४१६ नाहीं सिखावति ।१३६ दसन-बसन माझ।१४७ निंदामय बीभत्स ।१४।३० दिनप्रति जहँ ।११५ निपट कपट हर |४|१८ दीनो मैं पाइ ।१३।१३ निर्बेद ग्लानि ।६।१२ दोन्ही ताहि ।। नींद भूख दुति ।४।३ दीरघ दरीनि बसैं ।११।१८ नीरहिं तौ बिन ।१०।१६ नील निचोल ।।३८ दुखदायक ह्र ।।३० दुरिहै क्यों ।१२।१३ नृत्य गीत कबिता ।३३५ दुर्लभ देवनिहूँ ।११६ नेह-भरे लै ।२।१५ नैननि की अतुराई ७।२८ दूती सों संकेत ।७।२२ नैननि के तारनि ।५।२७ दूरि तें देखिबे ।५।१४ नैननि नवावी ।१२।१६ देखत उदधिजात ७१२४ नैन बैन मन ।८।१० देखत काहू II न्यौति के बुलाई ।५।३४ देखतहीं दुति ।।३ पंथ न थकत २२० देखतही चि- 1५/२६ पति को अति ।३।६३ देखतही जिहिं ।६।५३ परकीया द्वै भाँति ।३।६८ देखन को प्रिय ।४।३ सू पल ही पल ।।५१ देखी है गुपाल |३५२ पहिले तजि पारस ४१५ देख्ने नहीं ।१४।३८ पहिले सो हिय ।२७ देस काल बुधि ।१०।२६ देहि री काल्हि ।।३५ पहिले हठि ।।५२ है दधि दीनो १६९ पाइ परे पलिका ।१२।११ पाइ परें मनुहारि ।३।२७ घनु भ्र परि ।३।२१ सू पाइ परेहू तें 1७।१५ घाइ, जनी ।१२।१ पाइ परों बलि १५ धाई नहीं घर ।५।१५ पाग बनी अरु।१३।१४ धीरा बोले ।३।४६ पान न खाए ।६।४७ नंदनंदन खेलत ।।३२ पायन को परिबो।६।२२ नख-पद-पदवी ।४।१४ नदी बेतवे ।।३ पिय सों प्रगटन (४ पियहि मनावै ।१०११८ नयन बयन कछु।१४ मवल-अनंगा ।३१२२ पूरन-प्रम,प्रताप तें उपजि ।। भवलबधू नवजोबना ३३१७ पूरन-प्रेम-प्रताप तें भूलत ।६।१८ नवहू रस के १११६ पूरन-प्रेम-प्रभाव ।६।२७ बाह लगें मुख ।१३।२ प्यास ह रही ।।३