पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/२८६

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२६० रासकाप्रया लीनो हम मोल ॥२७ लोकलीक उल्लंघि ६ लोचन ऐंचि ।४।८ लोचन बीच चुभी ।८।२४ लोल अमोल ।१२।२१ वा मृगनैनी ज्यों ।१२।२९ श्रम अभिलाष ।६।३६ श्रीबृषभानुकुमारिहेत ११२ संपति बिपति ।३।१५ संबत सोरह से ।१।११ सखि गोकुल गोप ।६५६ सखि ज्यों उनको ।।१७ सखि बात सुनौ ।१४।१७ सजल चकित ४४ सब तें पर ।३।६७ सब तें होइ उदास ।१४१३७ सब देह भई।३।१३ .सब विभाव ।६४ सलज सुबुद्धि ।३।३ सहज सुगंध ।३।२ साम दान ।१०।२ सिक्षा, विनय ।१३।१ सिखै हारी सखी ।१३.१२ सिगरी मध्या तीन (३।४५ सीतल समीर १२५ सीतलहू हीतल ।१२।२६ सील रूप।४११४ सू सुंदरता पय पावक ।३।४४ सुख दैकै सब ।१०।११ दै सखीन ।३।२६ सुख में दुख ।११।२ सुधि बुद्धि ।८।११ सुधि भूल गई 1७18 सुनि समस्तरसकोबिदा ३५० सुभग दसा ।।५७ सुभ संजोग ।। सुल से फूल ७२३ सो अाक्रामित-1३१५५ सोचि सखी भरि ३३ सोधि निदाननि ।।३३ सो नवजोबनभूषिता ।३।२० सो प्रकास संजोग। श२१ सो प्रच्छन्न ।१।१६ सोभा को सघन ।१२।५ सोरहई सिंगार ।३।४२ सू सो लब्धापति ।२०५७ सो समस्तरसकोबिदा ३१५१ सौह को सोचु ।२।१७ सौंहनि को सोच ।१३।१६ सौहैं दिवाय ।४।१५ स्तंभ स्वेद ।६।१० स्वाधिनपतिका, उत्कहीं ७।२ स्वेद मदन-जल ३११२ हँसत कहत ।३।४ हसत खेलत ।५।२८ हँसति हँसति ।१०।१० हँसि बोलतहीं ।१६।३ हरित हरित ।१११४ हरि राधिका ।५।३६ हरि से हितू ।। हाँसी में बातक ।१२।१२ हांसी में हंसे ।१२।२२ हित के इत ।३।६२ हित तें कै ७४२५ हेला लीला करि ।६।०८ हेला लीला ललित ।।१६ है कोइ माई ।।१४ है गति मंद ।।५४ हे तरुनाई ॥११॥६ होइ अचंभो ।१४।३३ होइ कहा अब ७।३६ हाइ भयानक ।१४।२७ हो मन मैलो ।३।६६ होहि बीर ।।४।२४ होहि रौद्र रस ।१४।२१ हों सुख पाइ ।२६४ ह्वां उनके तनताप ।८।४७