पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/४०

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i to ) कि उस पर तिलक लिखा जाए। इस तिलक के लिखने में श्रीमोहनवल्लभजी पंत ने आरंभ में हाथ बँटाया । पर तीन प्रभाव तक कार्य होने के अनंतर वे अन्य कार्यगौरव से सहयोग नहीं दे सके। अपने बलबूते पर ही इसकी परिपूर्ति का मैंने संकल्प किया । इसकी पूर्ति में मेरे प्रिय शिष्य श्रीबदरीप्रसाद त्रिपाठी ने भी कुछ कार्य किया । उस समय श्री राजेंद्रप्रसाद ने इसकी प्रतिलिपि करने में सोत्साह योग दिया । टीका की पद्धति लालाजी की ही रखी गई है । पर इसमें पाठांतर भी दे दिए गए हैं। पाठांतरों के देने में किसी प्रति के नाम का उल्लेख नहीं किया गया है। इसका प्रयोजन अनुसंधान नहीं है, आलोचना या टीका-टिप्पणी है। इसी से केवल स्वीकृत पाठ के अतिरिक्त अन्य जितने पाठ मिले उनमें से प्रमुख दे दिए गए हैं। टीका में कठिन शब्दों का अर्थ 'शब्दार्थ' शीर्षक से और तदनंतर सुसंगत अर्थ 'भावार्थ' शीर्षक से दिया गया है। यथास्थान प्रमुख अलंकारों का निर्देश है । 'सूचना' के अंतर्गत अन्य ज्ञातव्य चर्चा की गई है । जहाँ सरलता है वहाँ केवल 'शब्दार्थ' दे दिया गया है अथवा अधिक सरलता होने पर वह भी नहीं दिया गया है । सूरति मिश्र और सरदार कवि की टीकाओं का पालोड़न किया गया है, पर उनकी मान्यता सर्वत्र स्वीकृत नहीं है। जहाँ प्रमुख भेद है वहां उनके मत का यथास्थान उल्लेख भी किया गया है। कहीं कहीं व्याकरण की कुछ सूचनाएं भी हैं। पाठनिर्णय में प्रमुख रूप से दो प्राचीन हस्तलिखित, लीथो की और अन्य प्राप्त मुद्रित प्रतियों का उपयोग किया गया है । हस्तलिखित प्रतियों में से एक मुझे प्राप्त सबसे प्राचीन प्रति है। इसका लिपि- काल सं० १७२२ है। दूसरी प्रति खंडित है। उसमें लिपिकाल नहीं है, पर वह भी पर्याप्त प्राचीन प्रति जान पड़ती है। लीथोवाली प्रति कदाचित् लाइट प्रेस की छपी है। लाइट प्रेस ने प्राचीन पुस्तकें छापने का कार्य भारतजीवन, वेंकटेश्वर तथा नवलकिशोर तीनों से उत्तम किया है । छपाई लीथो को होने से चाहे इनसे कहीं अपकृष्ट भी हो, पर ग्रंथ का संपादन प्रकृष्ट रूप में किया गया है। उसमें भी भ्रम या भूल है. पर अपेक्षाकृत कम । किसी किसी ग्रंथ में तो पार्श्व पर कुछ गिने चुने शब्दों के अर्थ भी दिए गए हैं । प्राचीन प्रतियों में कुछ छंद कहीं अधिक हैं, कहीं न्यून । अधिक छंदों के संबंध में निर्णय करना कठिन कार्य है । यह निश्चय करना भी कठिन है कि यह केशव का है या नहीं। कुछ वैज्ञानिक कहे जानेवाले अनुसंधान का सहारा लेकर, कुछ ग्रंथ की सरणि की साखी से, कुछ केशव की शैली का विचार करके तथा कुछ प्राचीनता का अवलंबन पाकर इस संबंध में यथोचित