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पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/५५

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रसिकप्रिया प्रथम प्रभाव अथ मंगलाचरण गणेशवंदना ( छप्पय ) गजबदन, सदनबुधि, मदनकदनसुत । गौरिनंद आनंदकंद जगबंद, चंदजुत। सुखदायक दायक सुकीर्ति जगनायक-नायक । खलघायक घायक दरिद्र सब लायक-लायक । गुरु गुनअनंत भगवंत भव भगतिवंत-भवभयहरन । जय केसवदास निवासनिधि लंबोदर असरनसरन ।१॥ प्रियाप्रसाद तिलक शब्दार्थ-एकरदन = एक दाँतवाले । वदन =मुख । सदनबुधि बुद्धि के घर । मदन = कामदेव । कदन = नाश करनेवाले । मदनकदन = महादेव । गौरिनंद = पार्वती को आनंद देनेवाले । कंद = जड़। जगबंद = ( जग वंद्य ) संसार के पूज्य । जगनायक = त्रिदेव ( ब्रह्मा, विष्णु, महेश)। नायक = स्वामी। घायक = ( घातक ) मारनेवाले । लायक-लायक = योग्यों में भी योग्य, सर्वश्रेष्ठ । गुरु = बड़े । भगवंत भव = संसार में समस्त ऐश्वर्यों से युक्त । (भग =षडैश्वर्य ) । भगतिवंत = भक्त । भव = आवागमन । निवासनिधि नव निधियों के घर। भावार्थ-एक दाँतवाले, गजमुख, बुद्धि के घर, कामदेव का नाश करने- वाले महादेव के पुत्र, अपनी माता पार्वती को आनंदित करनेवाले, आनंद की जड़, संसार के वंदनीय, ललाट पर चंद्रमा धारण करनेवाले, सुखदायक, कीति देनेवाले, त्रिदेवों के भी स्वामी, दुष्टों को मारनेवाले, दरिद्रता को दूर करनेवाले, सब योग्यों से भी योग्य, असंख्य बड़े गुणवाले, संसार में समस्त समृद्धियों से संयुक्त, भक्तों का जन्ममरण का भय हरनेवाले, निधियों के निवास- स्थान, असहाय को भी प्राश्रय देनेवाले लंबोदर श्रीगणेशजी की जय हो । अलंकार-आशिष ( केशव के मत से ), उल्लेख । पाठांतर १-सुकीति-सुकृति । जग-गन । गुरु-गुन-गुन-गन । भगति- भाग।