६ तृतीय प्रभाव (७६) भावार्थ-(सखी की उक्ति नायक से) आपने बरबस उसे (नायिका को) सुख देकर (सुख की सामग्रियाँ जुटाकर), सखियों को मध्यस्थ बनाकर, शपथ खाकर, कुछ नशीली वस्तुएँ खिलाकर तथा सुलाकर अपने वश में किया । फिर कमलनाल सी कोमल एवम् बेले की माला की भांति (सुकुमार एवम् सुगंध ) वाला को मसल डाला । अाप मनुष्य हैं या पशु ? (क्योंकि आपके कर्म कठोर हैं, निर्दयतापूर्ण हैं ) आपको अभी तक यही पता नहीं चला कि प्रभात हो गया है ( अभी तक आपने उसे मुक्त नहीं किया )। मेरी बात ही नहीं सुन रहे हैं । जरा इसके शरीर को तो देखिए, जान पड़ता है प्राण निकल से गए हैं। उस चित्रिनी ( नायिका ) को आपने विचित्र गति ( ढंग ) से रखा है, वह तो चित्र-सो (स्थिर निर्जीव ) हो गई है। हे नए रसिक, देखते क्यों नहीं? आपको ऐसा कृत्य करने में कौन-सा आनंद मिला ? अलंकार-विषम। मुग्धा को मान -(दोहा) मुग्धा मान करै नहीं, करै तौ सुनहु सुजान । त्यों डरपाइ छुड़ाइयै, ज्यों डरपै अज्ञान ।३०। शब्दार्थ '-डरपाइ = भयभीत करक । यथा-( सवैया) (७७) बोलै न बाल बुलावतहूँ नख-रेख लिखै भुव प्रेम-परेखौ। आपनो हाथ बिलोकि-बिलोकि कह्यो तब केसव बुद्धिबिसेखौ । छोटी-बड़ी विधि-रेख लिखी जुगायु की रेख सु कौन जुलेखौ। प्रेम तें बोल सह्यो न परयो अकुलाइ कह्यो पिय कैसी है देखौ ॥३१॥ शब्दार्थ-बाल = नायिका । भुव = भूमि । प्रेम-परेखौ = प्रेम की परीक्षा में, प्रेम के मान में । बुद्धिबिसेखौ = विशेषबुद्धिवाले (नायक) ने। विधि - ब्रह्मा । जुग = दो। सु = वह । लेखै समझी जाए । देखौ = देखा जाए। भावार्थ-( मुग्धा ने सखियों के कहने से मान किया है, नायक चतुराई से उसे भयभीत करके मान छुड़ा रहा है ) नायिका ( नायक के ) बुलाने पर भी नहीं बोलती, प्रेम का मान ठानकर नखों से पृथ्वी पर रेखाएँ खींच रही है। यह देखकर चतुर नायक ने अपना हाथ देख-देखकर 'यह कहना प्रारंभ किया कि ब्रह्मा ने छोटी-बड़ी दो रेखाएँ बनाई हैं। इनमें आयु की रेखा कौन सी मानी जाय ? प्रेम के कारण नायिका इन वचनों को सह न सकी ( वह डर गई कि कहीं आयु की रेखा छोटी ही न हो, नायक की आयु कम ही न ३०-कर-करहि । सुनहु०-सुनौ-निदान । त्यों-यों न्यों । ३१-परेखो, लेखौ आदि-परेखें, लेखें प्रादि।
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