पृष्ठ:रसिकप्रिया.djvu/८९

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lo रसिकप्रिया यथा -( कबित्त) (३८) देखी है गुपाल एक गोपिका मैं 'देवता सी, सोने तें सलोनी बास सोंधे ते सुहाई है। सोभा ही सुभाउ अवतार लियो घनस्याम, किधौं यह दामिनी कामिनी है आई है। देवी कोउ मानवी न दानवी न होइ ऐसी, भानवी न हावभाव भारती पढ़ाई है। केसौदास सब सुख-साधन की सिद्धि यह, मेरे जान मनहीं सों मैनका की जाई है।५२। शब्दार्थ-सलोनी - सुदर। बास --- ( वास ) सुगध। दामिनीय = बिजली ही। भानवी = भानु से उत्पन्न । मेरे :- जान पड़ता है। भारती = सरस्वती । मैन - ( मदन ) कामदेव । मैनका = एक अप्सरा। भावार्थ-(दूतो का वचन नायक से) हे गोपाल, मैंने एक अनुपम सौंदर्य वाली गोपिका देखी है जो सोने से भी ( अधिक ) सलोनी है और जिसके शरीर की सुगंध साक्षात् सुगंध से भी बढ़कर है । हे श्याम, या तो स्वयम् सुहा- वनी शोभा ने ही उसके रूप में अवतार लिया है, या साक्षात् विद्युत ही स्त्री बनकर चली आई है। कोई देवी, दानवी, सूर्यसमुद्भुता या मानवी ऐसी नहीं दिखाई पड़ती। ऐसा जान पड़ता है कि स्वयम् सरस्वती ने ही उसे हावभाव की शिक्षा दी है। वह सभी सुखों के साधन की सिद्धि रूप है, मुझे ऐसा जान पड़ता है कि स्वयम् कामदेव ने उसे मेनका अप्सरा से उत्पन्न किया है । अथ विचित्रविभ्रमा-प्रौढ़ा-लक्षण-( दोहा ) (६६) अति बिचित्रविभ्रम सु वह, प्रौढ़ा कहत बखानि । जाकी दीपति दूतिका, पियहि मिलावै आनि ५३॥ यथा---( सवैया ) (१००) है. गति मंद मनोहर केसव आनंदकंद हियें उलहे हैं। भौंह विलोसनि कोमल हासनि अंगसुबासनि गाढ़े गहे हैं। बंक बिलोकनि को अवलोकि सुमार ह्व नंदकुमार रहे हैं। एई तो काम के बान कहावत फूलनि के विधि भूलि कहे हैं ।५४। शब्दार्थ-कंद-जड़ । उलहे = उल्लसित । बिलास = भंगिमा, चलाना। ५२-मैं देवता सो-अनूप रूप । सुभाउ-सुहाई । लियो०-लियो स्याम कोषों, घनस्याम बौधों। मानवी-दानवी। दानवी-मानवी । भानवी-मानवी । हावभाव-होय भावै। पढ़ाई-पठाई। मैनका-मैनको । ५३-सु वह-सदा । कहत-प्रगट । ५४-उलहे-उमहे । एई तो-एक तौ । कहे-गहे ।