पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/१२०

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विभाव कवि-कर्म-विधान के दो पक्ष होते हैं—विभाव-पक्ष और भाव-पक्ष। कवि एक ओर तो ऐसी वस्तुओं का चित्रण करता है जो मन में कोई भाव उठाने या उठे हुए भाव को और जमाने में समर्थ होती हैं और दूसरी ओर उन वस्तुओं के अनुरूप भावों के अनेक स्वरूप शब्दों द्वारा व्यक्त करता है। एक विभावपक्ष हैं, दूसरा भाव-पक्ष । कहने की आवश्यकता नहीं कि काव्य में ये दोनों अन्योन्याश्रित हैं, अतः दोनों रहते हैं। जहाँ एक ही पक्ष का वर्णन रहता है वहाँ भी दूसरा पक्ष अव्यक्त रूप में रहता है। जैसे, नायिका के रूप 'या नखशिख का कोरा वर्णन में तो उसमें भी आश्रय को रति-भाव अव्यक्त रूप में वर्तमान रहता है। पर काव्य में विभाव ही मुख्य है। भावों के प्रकृत आधार या विषय को कल्पना द्वारा पूर्ण और यथातथ्य प्रत्यक्षीकारण कवि का सबसे पहला और सबसे आवश्यक काम है। जैसा पहले कहा जा चुका है, इसके अंतर्गत दो पक्ष होते हैं (१) आलंपन ( भाव का विषय), (२) आश्रय ( भाव का अनुभव करनेवासा ).