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रस-मीमांसा

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• १२४ इम-मीमांसा बुला रही हैं ; अथवा ( ख ) द्वितीय व्यापार का सृष्टि के बीच एक गोचर प्रतिरूप दिखाना ; जैसे “बुद-अघात सई गिरि कैसे ? खल के बचन संत सई जैसे ।” दूसरी अवस्था में प्रस्तुत दृश्य स्वयं सृष्टि या जीवन के किसी रहस्य का गोचर प्रतिबिंबवत् हो जाता है। अतः 'उस प्रतिबिंब का प्रतिबिंब ग्रहण करने में कल्पना उत्साह नहीं दिखाती। इसी से जहाँ दृश्य-चित्रण इष्ट होता है वहाँ के लिये यह अवस्था अनुकूल नहीं होती। | वाल्मीकिज़ी भी चीच बीच में उपमाएं देते गए हैं ; पर उससे उनके सूक्ष्म-निरीक्षण में कसर नहीं आने पाई है। वर्षा में पर्वत की गेरू से मिलकर नदियों की धारा का लाल होकर बहना, पर्वत के ऊपर से पानी की मोटी धारा का काली शिलाओं पर गिरकर छितराना, पेड़ों पर गिरे वर्षा के जल का पत्तियों की नोक पर से बूंद बूंद टपकना और पक्षियों का उसे पीना, हेमंत में कमलों के नाल मात्र को खड़ा रहना और उसके छोर पर केसर का छितराना, ऐसे ऐसे व्यापारों को वह् सामने लाते चले गए हैं। सुंदरकांड के पाँचवें सर्ग में जो छोटा सा ‘चंद्रनामा' है वह इसके विरोध में नहीं उपस्थित किया जा सकता ; क्योंकि वह एक प्रकार की स्तुति या वर्णन-मात्र हैं। वहाँ कोई इश्य-चित्रण नहीं है। | विषयी या ज्ञाता अपने चारों ओर उपस्थित वस्तुओं को कभी कभी किस प्रकार अपने तत्कालीन भावों के रंग में देखता है इसका जैसा सुंदर उदाहरण आदिकवि ने दिया है वह वैसा अन्यत्र कहीं कदाचित् ही मिले। पंचवटी में श्रम बनाकर हेमंत में जब लक्ष्मण एक एक वस्तु और प्राकृतिक व्यापार का