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रस-मीमांसा

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इस-मीमांसा हास और आश्चर्य दोनों लक्ष्यहन होने के कारण किसी प्रकार की इच्छा, संकल्प या प्रयत्न की ओर प्रवृत्त नहीं करते । इसी से उनके द्वारा जो मनोरंजन होता है वह विश्रामस्वरूप जान पड़ता हैं। हम चारपाई पर पड़े पड़े बड़े आराम के साथ लोगों पर हँस सकते हैं तथा अद्भुत और अनूठी वस्तु को आँख निकाले और मुंह बाए ताक सकते हैं। कोई विशेष इच्छा या संकल्प नहीं उत्पन्न होता जिसकी पूर्ति के निमित्त शरीर या मन को कोई प्रयास करना पड़े। मोटे आदमी जो जल्दी क्रोध, भय आदि करने का श्रम नहीं उठाने जाते मसखरापन अकसर किया करते हैं। आचार्यों ने हास्य की यही विशेपता लक्ष्य कर के निद्रा और आलस्य को उसके संचारी कहा है | हलके मनोरंजन के लिये, घड़ी आध घड़ी जी बहलाने के लिये, लोग प्रायः हंसीदिल्लगी के चुटकुले सुनते या अजायबखाने की सैर को जाते हैं। काव्य के इसी प्रकार के इलके मनोरंजन की सामग्री समझे जाने पर अद्भुत चमत्कारपूर्ण फुटकल उक्तियों के कहनेवालों की गिनती बड़े बड़े कवियों में होने लगी। | शोक भी अपने विषाद आदि संचारियों के सहित प्रयत्न शून्य दिखाई पड़ता हैं क्योंकि वह प्रयत्नकाल में नहीं रहता, प्रयत्न के विफल होने पर अथवा प्रयत्न द्वारा कोई आशा न होने पर ही होता है। क्रोध और भय दोनों में ध्यान देने की बात यह है कि आतंबन का स्वरूप वही रश्ता हैं-मुख्य भेद यह लक्षित होता है कि एक में अपनी सामथ्र्य की ओर ध्यान रहता है और दूसरे में दूसरे की ।। १ [ निद्रालस्यावहित्थाद्या अत्र स्युर्यभिचारिणः । - साहित्यदर्पण, ३-११६ । ]