पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/३३६

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प्रस्तुत रूप-विधान ३२३ | नकल की नकल निरालापन दिखाने के लिये हिंदी में अय, इस 'बीसवीं सदी में, हो रही है ।* योरप में तो इस उन्माद के अभिनय को समाप्त हुए बहुत दिन हो गए; वहाँ तो अब यह एक पुराने जमाने की बात हो गई । इसी प्रकार रहस्यवादी प्रतीकवाद (Symbolism or Decadence) उन्नीसवीं शताब्दी समाप्त होने के पहले ही अतीत दशा को प्राप्त हो गया । पर वंग भाषा के प्रसाद से न जाने कब के मरे हुए आंदोलनों की नकल हिंदी में अब हो रही है-काव्य-रचना के क्षेत्र में भी और आलोचना के क्षेत्र में भी ।। योरप में साहित्य-संबंधो आन्दोलनों की आयु बहुत थोड़ी

  • ये वंगाश्रयी अब कभी कभी अँगरेजी-साहित्य को प्रगति का भो कुछ परिचय प्रकट करने के लिये ग्रेजी और रवींद्रनाथ का वुशन” भी दिखाने चल पाते हैं, पर अगरेजी-कविता की दो पंक्तियों का भी अनुवाद नहीं करना पड़ा इनका असजी रूप खुल जाता है, जैसे

A sensitive plant in a garden grew And the young winds fed it with silver dew, अब इसका स्कूली तर्जुमा देखिए “पुक होशमंद पौधा बगीचे में ठगा। युवती इवा इसे धंदी की । ओस पिलाने जगी।" (‘सुधा'-घाड़, जुलाई ११३० ।) खेद इस बात पर होता है कि ऐसे लोग,"वींद्रनाथ और शेजी के दर्शन पर निराळा नोट लिखकर उसे संपादकीय कालम तक में पहुँचा देते हैं। प्रतिष्ठित पत्रिका के संपादक यदि थोड़ी सावधानी रखें, तो ऐसी अनधिकार चेष्टा की बहुत कुछ रोक हो जाय। इनके कारण हिंदोसाहित्य का सिर ऊँचा होने के स्थान पर ना ही होगा।