________________
३२४ रस-मीमांसा होती है। कोई अदोलन १० या १२ वर्ष से ज्यादा नहीं चलता । ऐसे आंदोलनों के कारण वहाँ इस बीस शताब्दी में आकर काव्य-क्षेत्र के बीच बड़ी गहरी गड़बड़ी और अव्यवस्था फैली । काव्य की स्वाभाविक उमंग के स्थान पर नवीनता के लिये कुलता मात्र रह गई। कविता चाहे हो, चाहे न हो, कोई नवीन रूप या रंग-ढंग अवश्य खड़ा हो। पर कोरी नवीनता केवल मरे हुए आंदोलन का इतिहास छोड़ जाय तो छोड़ जाय, कविता नहीं खड़ी कर सकती। केवल नवीनता और मौलिकता की बढ़ी-चट्ठी सनक में सच्ची कविता की ओर ध्यान कहाँ तक रह सकता है । कुछ लोग तो नए नए ढंग की उच्छृखलता, वक्रता, असंबद्धता, अनर्गलता इत्यादि का ही प्रदर्शन करने में लगे ; थोड़े से ही सच्ची भावनावाले कवि प्रकृत मार्ग पर चलते दिखाई पड़ने लगे। समालोचना भी अधिकतर हवाई ढंग की होने लगी # रहस्यवादी प्रतीकवाद्, मुक्तछंदवाद्, 'कला का उद्देश्य कला.” वाद् इत्यादि तो अब वहाँ बहुत दिन के मरे हुए आंदोलन समझे जाते हैं। इस बीसवीं शताब्दी के आंदोलनों में अभिव्यंजनावाद . (Expressionism), जार्जकाल-प्रवृत्ति (Georgianism ), मूर्तिमत्तावाद (Imagism), संवेदनावाद (Impressionism)
- Wherever attempts at sheer newness in poetry were made, they merely ended in dead movements.
Criticism became more dogmatic and unreal, poetry more eccentric and chaotic, --A Survey of Modernist Poetry, by Laura Riding and Robert Graves. (1927)