पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/६४

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काव्य ५३ असंपृक्त अलंकार' चमत्कार या तमाशे हैं। चमत्कार का विवेचन पहले हो चुका है। , अलंकार हैं क्या ? सुक्ष्म दृष्टिवालों ने काव्यों के सुंदर सुंदर स्थल चुने और उनकी रमणीयता के कारणों की खोज करने लगे । वर्णन-शैली या कथन की पद्धति में ऐसे लोगों को जो जो विशेषताएं मालूम होती गई उनका वे नामकरण करते गए। जैसे, ‘विकल्प' अलंकार का निरूपण पहले-पहल राजनक रुय्यक ने किया । कौन कह सकता है कि काव्यों में जितने रमणीय स्थल हैं सब ढूंढ़ डाले गए, वर्णन की जितनी सुंदर प्रणालियाँ हो सकती हैं सव निरूपित हो गई अथवा जो जो स्थल रमणीय लगे उनकी रमणीयता का कारण वर्णन-प्रणाली हो थी ? आदि। काव्य रामायण से लेकर इधर तक के काव्यों में न जाने कितनी विचित्र वर्णन-प्रणालियाँ भरी पड़ी हैं जो न निर्दिष्ट की गई हैं। और न जिनके कुछ नाम रखे गए हैं। उपसंहार कविता पर अत्याचार भी बहुत कुछ हुआ है। लोभियों, स्वार्थियों और खुशामदियों ने उसका गला दबाकर कहीं अपात्रों की–आसमान पर चढ़ानेवाली—स्तुति कराई है, कहीं द्रव्य न देनेवालों की निराधार निंदा । ऐसी तुच्छ वृत्तिवालों का अपवित्र हृदय कविता के निवास के योग्य नहीं । कविता-देवी के मंदिर ऊँचे, खुले, विस्तृत और पुनीत हृदय हैं। सच्चे कवि राजाओं की सवारी, ऐश्वर्य की सामग्री, में ही सौंदर्य नहीं हुँदा करते । वे फूस के झोपड़ों, धूल-मिट्टी में सने किसानों, बच्चों के मुँह में चारा डालते हुए पक्षियों, दौड़ते हुए कुत्तों और चोरी