पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/११६

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खड़ी बोली और उसका पद्य] ११७ [ 'हरिऔध' श्रीमान् निराला इत्यादि कतिपय नवयुवकों ने भी इस विषय की अच्छी रचनाएँ की हैं; किन्तु यह कहने के लिए मैं विवश हूँ कि कुछ इने-गिने सहृदयों को छोड़कर अधिकतर लोगों की रहस्यवाद की कविताएँ उपहासास्पद होती हैं। मुझको ऐसे रहस्यवाद की कविता के लेखक भी मिले हैं जो पूछने पर अपनी कविताओं का अर्थ स्वयं नहीं बतला सके. यह अत्यन्त लज्जा और दुख की बात है। ऐसी कविताओं से क्या इष्ट- सिद्धि हो सकती है ? वे लोग इसको स्वयं सोचें । रहस्यवाद' अथवा मिस्टिसिज्म क्या है ? और कुछ नहीं, इस रहस्यमय संसार का रहस्योद्घाटन है । संसार रहस्यमय है, इसका एक-एक रजकण चमत्कारपूर्ण है। सुनील निर्मल गगन, अनन्त तारकपुज, कलकल- निनादिनी सरिता, श्यामल तृणराजि, कलित कुसुमावली, हरे-भरे पादपवृन्द, चित्र-विचित्र विहंगम समूह, नाना रत्नचय, मानव शरीर, उत्तुंग शैलमाला, तरंगायमान जलधि, जिधर नेत्र उठाइये उधर ही रहस्यमय दृश्य सामने आता है। यही नहीं ब्रह्म क्या है ? वास्तव में कुछ है या नहीं । संसार क्या है ? क्यों बना ? जीवन-मरण क्या है ? नियति- चक्र किसे कहते हैं ? सांसारिक नाना क्रिया-कलाप का अर्थ क्या है ? प्रयोजन क्या है ? जीवन की सार्थकता क्या है ? क्यों कोई माई का लाल है ? क्यों कोई काल है ? क्यों कोई सुखी है ? क्यों कोई दुखी है ? ऐसे-ऐसे नाना प्रश्न भी हमारे सामने आते हैं, नाना तर्कनाएँ हृदय में उठती हैं । इनका उत्तर देने की चेष्टा, संसार के मर्मों के उद्घाटन का उद्योग, प्रत्येक पदार्थों का यथार्थ ज्ञान लाभ करने का यत्न चिरकाल से हो रहा है । अब भी होता है, भविष्य में भी होगा। किन्तु, यह अज्ञेयवाद' जैसा पहले था अाज भी वैसा ही है, भविष्य में भी ऐसा ही रहेगा। इस विषय में जिसका जितना ज्ञान है, जिसकी पहुँच जहाँ तक है, वह वहाँ तक प्रत्येक विषयों पर प्रकाश डालने की चेष्टा करता है; किन्तु असीम गगन का अन्त पाना साधारण विहरणशील किसी विहंग