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पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/१२

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राष्ट्र निर्माणकारी साहित्य के निर्माता

'हरिऔधजी'

देशरत्न डा० राजेन्द्रप्रसाद

मैं मानता हूँ, किसी भी देश की तब तक उन्नति नहीं हो सकती, जब तक उस देश की उन्नति के काय में साहित्य का आश्रय न लिया जाय। जब तक साहित्य न हो--ऊँचा साहित्य, मनुष्यों के भावों को ऊपर उठाने वाला साहित्य न हो, तब तक कोई भी देश अपनी उन्नति नहीं कर सकता। अन्य देशों की उन्नति के इतिहास में उन देशों के उन्नत साहित्य का हाथ अधिक रहा है। इसलिये साहित्य की उन्नति राष्ट्र की उन्नति है। राष्ट्र को साहित्य से आप अलग नहीं कर सकते। शरीर से प्राण के अलग होने पर शरीर मिट्टी है और प्राण को कोई देख नहीं सकता।

आज देश में जो नवजीवन देखने को मिलता है, उसमें साहित्य का बहुत बड़ा हाथ है। राष्ट्र-हित के लिये, देश-हित के लिये, साहित्यकार सदा से रहते आये हैं और रहेंगे। जो इच्छा-आकांक्षा को, देश के दिल के दर्द को प्रकट करता है, जो देश को ऊपर उठाता है--