कर्तव्य पथ की ओर अग्रसर करता है, वह उन्नत साहित्य है। साहित्य के हाथों में देश को बनाने और बिगाड़ने का काम है। उन्नत साहित्य वही है, जो देश को नीचे गिराने से बचावे। जो साहित्य मनुष्य को ऊपर ले जाने वाला है, उस साहित्य के निर्माता संसार में अमर होते हैं। आज का हिन्दी साहित्य दिनों-दिन प्रगति के पथ पर आगे बढ़ रहा है। महीने-महीने नये-नये ग्रन्थ छपते हैं। छापेखानों से साहित्य में सस्तापन आ गया है; पर जहाँ इन छापेखानों से अच्छी से अच्छी चीजें हमें मिली हैं वहाँ बुरी से बुरी चीजें भी हमें मिल रही हैं। सुन्दर और सस्ती चीजों से हमें लाभ हुआ है, तो गन्दी चीजों से हमारी हानि भी कम नहीं हुई है। जो साहित्यिक हों, उनका कर्त्तव्य है कि वे ऐसे साहित्य का निर्माण करें जो व्यक्ति और राष्ट्र को ऊपर उठावे। वे अपनी लेखनी के मुंह से ऐसे रत्न निकालें जो मनुष्य को अधोगति की ओर जाने से रोकें। पूज्य कविवर जी जिनकी सेवा के लिये, आदर प्रदर्शन के लिये हम आये हैं, उनका जीवन ऐसे ही साहित्य के निर्माण में लगा है--आपने ऐसे साहित्य की रचना की है, जिससे देश को ऊपर उठने में बहुत कुछ सहायता मिली है और आप की यह सेवा एक साल दो साल की ही नहीं है, वह आजीवन सेवा है। किसी लालच से नहीं, किसी आकांक्षा से नहीं बल्कि सेवा को
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