पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

को धन्य समझता हूँ। आपकी रचना के समुद्र में डूब कर उसमें से रत्न निकालना मेरी सामर्थ्य से बाहर की बात है। पर हाँ, एक बात मैं यह कह देना चाहता हूँ कि जो सुन्दर शब्दावली के साथ ऊँचे भावों का समावेश देखना चाहते हों, वे उपाध्याय जी के ग्रन्थों को पढ़ें जो हिन्दी के द्वारा संस्कृत सीखना चाहें, वे भी हरिऔध जी की रचनाएँ देखें और जो पुरानी चीजों को नये रंग रूप में देखना चाहते हैं, वे भी उपाध्याय जी की पुस्तकें पढ़ें; जो नयी चीजों को पुराने रूप रंग में देखना चाहते हों, वे भी उपाध्याय जी की रचनाएँ पढ़ें। . [नागरी प्रचारणी सभा, पारा द्वारा प्रायोजित हरिऔध अभि- नन्दनोत्सव (१९३७ ई०) पर दिये गये भाषण का अंश । ]