ही अपनी सेवा का पुरस्कार समझ कर आपने सेवा-व्रत का पालन किया है। आप उस समय से हिन्दी की सेवा कर रहे हैं जिस समय आप लोगों में अधिकांश का जन्म भी नहीं होगा, हिन्दी के सेवा-क्षेत्र में न आने की बात तो निश्चित ही है।
आज इस वृद्धावस्था में भी कोई दिन ऐसा नहीं जाता जब आपके दिल और दिमाग़ से कोई ऐसी बात न निकलती हो जिससे देश की सोयी हुई भावनाओं के जगने में मदद पहुँचे। आप जैसे राष्ट्र-निर्माणकारी साहित्य के निर्माता का आदर करूँ मैं अपना गौरव बढ़ा रहा हूँ। नागरी प्रचारिणी सभा को बधाई है कि उसने इस समारोह को इकट्ठा किया, साहित्यिक भाइयों को इस समारोह में उपस्थित होने का अवसर दिया। हरिऔध जी का इससे भी बढ़ कर समादर यह है कि जो कुछ उन्होंने लिखा है, उसको हम कम से कम एक बार तो अवश्य देख जायँ। हम सब मिल कर इस बात को दिखला दें कि हम हरिऔध जी के पूजक हैं। इस काम में हम और किसी से कम नहीं हैं और वह तब हो सकता है जब हम उनकी रचनाओं को मनोयोगपूर्वक पढ़ेंगे।
मैं आपके लेखों के सम्बन्ध में, आपकी कविताओं के सम्बन्ध में कुछ कहने का अधिकारी नहीं हूँ। मैं तो दूर से भक्त की तरह उनके दर्शन किया करता हूँ और इसी में अपने