पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/१९६

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गोस्वामी तुलसीदास ] १६७ [ 'हरिऔध' प्राप्त है उस उच्च पद को सूरदास जी नहीं प्राप्त कर सके। दृष्टिकोण की व्यापकता में भी सूरदास का वह स्थान नहीं है जो स्थान गोस्वामीजी का है। मैं यह मानूंगा कि अपने वर्णनीय विषयों में सूरदासजी की दृष्टि बहुत व्यापक है। उन्होंने एक-एक विषय का कई प्रकार से वर्णन किया है। मुरली पर पचासों पद्य लिखे हैं तो नेत्रों के वर्णन में सैकड़ों पद लिख डाले। परन्तु सर्व विषयों में अथवा शास्त्रीय सिद्धान्तों के निरूपण में जैसी विस्तृत दृष्टि गोस्वामीजी की है, उनकी नहीं। सूरदासजी का मुरली-निनाद विश्व विमुग्धकर है। उनकी प्रेम- सम्बन्धी कल्पनाएँ भी बड़ी ही सरस एवं उदात्त है। परन्तु गोस्वामीजी की मेघ-गम्भीर गिरा का गौरव विश्वजनीन है और स्वर्गीय भी। उनकी भक्ति भावनाएँ भी लोकोत्तर हैं। इसलिए मेरा विचार है कि गोस्वामीजी का पद सूरदासजी से उच्च है। मैंने पहले यह लिखा है कि अवधी और ब्रजभाषा दोनों पर-स्तर समान अधिकार था। मैं अपने इस कथन की सत्यता-प्रतिपादन के लिए उनकी रचनाओं में से दोनों प्रकार के पद्यों को नीचे लिखता हूँ। उनको पढ़कर आप लोग स्वयं अनुभव करेंगे कि मेरे कथन में अत्युक्ति नहीं है। १-फोरइ जोग कपारु अभागा । भलेउ कहत दुख रउरेहिं लागा । कहहिं भूठि फुरि बात बनाई। ते प्रिय तुम्हहिं करुइ का माई । इमहुँ कहब अब ठकुरसोहाती । नाहिं त मौन रहब दिन राती ।