पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/२०१

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गोस्वामी तुलसीदास ] २०२ [ 'हरिऔध' ६-बैठी सगुन मनावति माता। कब अइहैं मेरे बाल कुसल घर कहहु काग फुरि बाता। दूध भात की दोनी दैहों सोने चोंच महौं । जब सिय सहित बिलोकि ___नयन भरि राम लखन उर लैहौं । अवधि समीप जानि जननी जिय अति आतुर अकुलानी। गनक बुलाइ पाय परि पूछत प्रेम मगन मृदु बानी। जेहि अवसर कोउ भरत निकट ते समाचार लै आयो । प्रभु आगमन सुनत तुलसी मनो मरत मीन जल पायो। -गीतावली -चावरो रावरो नाह भवानी। दानि षड़ो दिन देत दये बिनु . .. बेद बड़ाई भानी। ... निज घर की बर बात विलोकहु हो तुम परम सयानी।