कविवर केशवदास ] २२ [ 'हरिऔध' न्तानुसार उसको उन्होंने शुद्ध रूप में लिखा है, क्योंकि शुद्ध रूप में लिखने से छन्द की गति में कोई बाधा नहीं पड़ी । परन्तु दूसरी पंक्ति में उन्होंने उसका वह रूप लिखा है जो ब्रजभाषा का रूप है। दोनों पंक्तियाँ एक ही पद की हैं। फिर उन्होंने ऐसा क्यों किया ? कारण स्पष्ट है । 'शृङ्गार' में पाँच मात्राएँ हैं और 'सिंगार' में चार मात्राएँ हैं। दूसरे चरण में 'शृङ्गार' खप नहीं सकता था । क्योंकि एक मात्रा अधिक हो जाती। इसलिए उन्हें उसको ब्रजभाषा ही के रूप में रखना पड़ा। अपने अपने नियमानुसार दोनों रूप. शुद्ध हैं। चौथे पद्य में उन्होंने अपने नाम को दन्त्य 'स' से ही लिखा, यद्यपि वे अपने नाम में तालब्य 'श' लिखना ही पसन्द करते हैं, यहाँ भी यह प्रश्न होगा कि फिर कारण क्या ? इसी पंक्ति में 'सेस' और 'सीसन' शब्द भी आये हैं जिनका शुद्ध रूप 'शेष' और 'शीशन' है। इस शुद्ध रूप में लिखने में भी छन्द की गति में कोई बाधा नहीं पड़ती। क्योंकि मात्रा में न्यूनाधिक्य नहीं। फिर भी उन्होंने उसको ब्रजभाषा के रूप में ही लिखा। इसका कारण भी विचारणीय है, वास्तव बात यह है कि उनके कवि हृदय ने अनु- प्रास का लोभ संवरण नहीं किया । अतएव उन्होंने उनको ब्रजभाषा के रूप ही में लिखना पसंद किया । 'केशव' 'सेस' और 'सीसन' ने दन्त्य 'स' के सहित 'उसासी' के साथ आकर जो स्वारस्य उत्पन्न किया है। वह उन शब्दों के तत्सम रूप में लिखे जाने से नष्ट हो जाता। इसलिए उनको इस पद्य में तत्सम रूप में नहीं देख पाते। ऐसी ही और बातें बतलायी जा सकती हैं कि जिनके कारण केशवदासजी एक ही शब्द को भिन्न रूपों में लिखते हैं। इससे यह न समझना चाहिये कि उनका कोई सिद्धान्त नहीं, वे जब जिस रूप में चाहते हैं किसी शब्द' को लिख देते हैं । मेरा विचार है कि उन्होंने जो कुछ किया है नियम के अन्तर्गत ही रह कर किया है। दो ही रूप उनकी रचना में श्राते हैं या तो संस्कृत शब्द अपने तत्सम रूप में आता है अथवा ब्रजभाषा के
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