पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/२४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कविव र देव ] २५० [ 'हरिऔध' (१२) रीमि रीमि रहसि रहसि हँसि हसि उठे ___ साँसै भरि आँसू भरि कहति दई-दई । चौंकि चौंकि चकि चकि उचकि उचकि देव जकि जकि बकि षकि परति बई-पई। दुहुँन को रूप गुन दोउ बरनत फिरें घर न विराति रीति नेह की नई-नई । मोहि मोहि मन भयो मोहन को राधिका मै राधिका हूँ मोहि मोहि मोहनमई-मई । (१३) जब ते कुँवर कान्ह रावरी कलानिधान कान परी वाके कहू सुजस कहानी सी। तब ही ते देव देखी देवता सी हँसति-सी खीमति-सी रीमति-सी रूसति रिसानी-सी। छोही सी छली सी छीनि लीनी सी छकी सीछिन जकी सी टकी सी लगी थकी थहरानी सी . बींधी सी बिंधी सी विष बूड़ी सी विमोहित सी बैठो बाल पकति बिलोकति बिकानी सी। ( १४ ) देख्ने अनदेख्ने दुख-दानि भये सुख-दानि __सूखत न आँसू सुख सोइबो हरे परो। पानि पान भोजन सुजन गुरुजन भूले .... 'देव' दुरजन लोग . लरत खरे परो।