पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/३८

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साहित्य " सहितस्य भावः साहित्य" जिसमें सहित का भाव हो, उसे साहित्य कहते हैं । 'परस्परसापेक्षाणाम् साहित्यम् । " युगपदेकक्रियान्वयित्वम् श्राद्ध-विवेक " तुल्यवदेकक्रियान्वयित्वं वृद्धिविशेषविषयित्वं वा साहित्यम् ।" -- शब्दशक्ति- प्रकाशिका "मनुष्य कृत श्लोकमय ग्रन्थविशेष: साहित्यम् ।” तुल्यरूपाणाम् -शब्दइ-कल्पद्रुम सहृदय विद्वान् श्रीमान् पण्डित रामदहिन मिश्र, काव्यतीर्थ ने साहित्य का विलक्षण अर्थ किया है । वे कहते हैं " जो हित के साथ वर्तमान है, वह हुआ सहित और उसका जो भाव है, वही हुआ साहित्य, अर्थात् जो हमारे हितकारी भाव हैं, वे ही साहित्य हैं ।" -- साहित्य-मीमांसा कवीन्द्र रवीन्द्र कहते हैं -- “ सहित शब्द से साहित्य शब्द की उत्पत्ति है, अतएव धातुगत अर्थ करने पर साहित्य शब्द में एक मिलन का भाव