पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/४६

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कवि ]
[ 'हरिऔध'
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सकती। यह वह अगाध समुद्र है, जो आज भी अनवगाहित है; परन्तु जिसने इसका जितना ही अधिक भेद जाना है, इस जटिल ग्रन्थि को जितना ही खोला है, इस असीम और अनन्त अथच नितान्त मनोमुग्धकर अपार पारावार में जितना ही अधिक अवगाहन किया है, वह उतना ही अधिक भाग्यशाली और उतना ही अधिक उच्च पदारूढ़ है। उसके द्वारा इस मंगलमयी सृष्टि का जितना हित साधन होता है, मानव समूह का वरंच प्राणिमात्र का जितना श्रेय होता है, अन्य द्वारा उतना होना असंभव है। 'सर्व खल्विदं ब्रह्म, जीवो ब्रह्मैवनापरः', 'ईश्वर अंश जीव अविनाशी', ये वाक्य हमको अभेद का पाठ पढ़ाते हैं, बतलाते हैं कि जीवन यदि अविद्याग्रस्त नहीं है, तो वह समझ सकता है कि वह क्या है? शेली का कथन है कि "सुन्दर और साधारण दृश्यों को देखकर बच्चों के मुँह से जो आनन्द की किलकारी निकलती है, उच्चतर सौंदर्य की अभिव्यक्ति से कवि का आनन्द भी वैसे ही काव्य रूप में उछल पड़ता है। पहला मरणाधीन है परन्तु दूसरा अमर है। कवि उस अनन्त और एक का अंश है और इसी कारण उस अनन्त लीलामय की लीलाओं पर अपनी लीला का स्वांग रचनेवाला, उसके अनन्त सौंदर्यमय दृश्यों द्वारा अपनी सौंदर्यमयी कविता को सजीव बनानेवाला, उसकी अलौकिक भावमयी रचना की कलित कुसुमावली द्वारा अपनी कविताकामिनी को सुसज्जित करनेवाला, उसके औदार्य आदि महान गुणों की मंजु मुक्ता द्वारा अपने मानस को सजानेवाला एक सहृदय जन भी कवि नाम से ही पुकारा जाता है। अग्निपुराण में लिखा है---

नरत्वं दुर्लभं लोके, विद्या तत्र सुदुर्लभा।
कवित्वं दुर्लभं तत्र शक्तिस्तत्र सुदुर्लभा॥

नरत्व दुर्लभ है, विद्या प्राप्ति उससे दुर्लभ है, कवित्व उससे दुर्लभ है, शक्ति उससे भी दुर्लभ है। हमी नहीं कहते कि 'प्राणभृत्सु