कवि कौन है? यजुर्वेद के चालीसवें अध्याय का आठवाँ मंत्र यह है "कविर्मनीषी परिभूः स्वयंभूः"। परमात्मा कवि है, मनीषी है, सर्वव्यापी है और स्वयमेव है। इन नामों में परमात्मा को सर्वप्रथम कवि नाम से क्यों अभिहित किया गया है? इसलिये कि ब्रह्मस्तंब पर्यत जो कुछ इन्द्रियगोचर है उसमें उसकी अलौकिक मार्मिकता और अनिर्वचनीय कवि-कर्म का विकास है। चाहे आप हिमधवल पर्वत मान लें, चाहे उत्ताल तरंग तोयनिधि, चाहे लहरीलीलासंकुल सरिता, चाहे शस्यश्यामला धरित्री, चाहे फल-कुसुम भारावनत तरुपुंज, चाहे सुनील निर्मल गगन, चाहे तेजः-पुंज-कलेवर मरीचिमाली, चाहे सरससुधास्रावी मयंक, चाहे चमत्कारमय तारकसमूह, चाहे कोमलकान्त शरीर, चाहे एक रजकण, आप जिसे लेंगे उसी में उस अनन्त-लीलामय की अलौकिक काव्यकला दृष्टिगोचर होगी। उसी में उसकी अभूतपूर्व मार्मिकता दिखायी पड़ेगी। यही सब अद्भुत व्यापार सर्वप्रथम मानव दृष्टि को उसकी ओर आकर्षित करते हैं। इसीलिए सर्वप्रथम उसका परिचय कवि नाम द्वारा ही दिया गया है। मन, बुद्धि, हृदय, नेत्र और मस्तिष्क की रचना में जो मार्मिकता लक्षित होती है, जो अनिर्वचनीय प्रतिभा प्रतिभासित होती है, उसकी इयत्ता नहीं हो
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