पृष्ठ:रहीम-कवितावली.djvu/१११

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खेट-कौतुकम्*

श्लोक

यत्पादपङ्कजरेणोः प्रसादमासाद्य सर्वभुवनेषु।
प्रणमामीष्टसुमूर्ति तामहममराः प्रभुत्वतां यान्ति ॥१॥

जिनके चरण कमल-धूलि के प्रसाद से देवता सम्पूर्ण लोकों में बड़ाई पाते हैं, उन अपने इष्टदेव कृष्णचन्द्र को मैं प्रणाम करता हूँ ॥ १ ॥

कमर्विलाधशालए नरोहि बामुरौवतः।
सदाबली च साबिरः सुकर्मकृद्यदा भवेत् ॥२॥

जिसकी कुण्डली के तीसरे स्थान में चन्द्रमा हो वह मनुष्य सन्तोषी,शीलवान्,बली और अच्छे कामों का करनेवाला होता है ॥२॥

मुश्तरी यदि भवेद् ज़रखाने,
बुज़रुगः परमपुण्यमतिः स्यात् ।
कामिल: कनकसूनुयुतश्च,
खूबरोहि मनुजो ज़रदारः ॥ ३॥

  • इस पुस्तक के पाँच श्लोक नमूने के तौर पर दिए गए हैं । यह प्राप्य है और प्रकाशित भी हो चुकी है।