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रहीम-कवितावली।
एक बाग में जा पहुँचे । देखा कि आज फिर एक बालनायिका फूल चुन रही है । उस चन्द्रमुखी, नवयौवन सम्पन्ना को देखकर उसके मोह में वे फिर फँस गए । जब उससे कुछ और बस न चला तो कहते हैं कि हे प्रिये
अब तेरे विना मेरा जीना नहीं हो सकता, बताओ अब तुम कैसे मिल सकती हो।
अच्युतचरणतरंगिणी, शशिशेखरमौलिमालतीमाले ।
मम तनुवितरणसमये, हरता देया, न मे हरिता ॥८।।
इसका अर्थ रहीम ने स्वयम् एक दोहे में किया है। दोहा इस प्रकार है।
अच्युत-चरन-तरंगिनी, सिव-सिर-मालतिमाल ।
हरि न बनायो सुरसरी, कीजो इन्दव भाल ॥
समाप्त।
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