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रहीम की कविता।

इन्हीं बातों से पता चलता है कि रहीम का समय ब्रजभाषा की कविता के लिए विशेष उत्थान का था।

इनके पूर्ववर्ती अनेक कवियों ने अधिकतर दोहे-चौपाइयों अथवा पदों में अपनी रचना की है। कवित्त और सवैया छन्दों का प्रयोग तुलसीदासजी के अतिरिक्त दो एक सा- धारण कवियों को छोड़कर किसी ने भी नहीं किया। शायद इसी कारण से रहीम ने भी अपनी रचना अधिकांश दोहों में समाप्त की हो। दोहों के बाद बरवा छन्दों का भी इन्होंने अधिक प्रयोग किया है। इनके पहिले तुलसीदासजी ने बरवा छन्दों में बरवै रामायण बनाया था। अन्य कवियों ने बरवा छन्द का व्यवहार बहुत कम किया है। कवित्त-सवैया छन्दों में भी रहीम ने कुछ स्फुट रचना की है। हिन्दी के सिवाय इन्होंने संस्कृत में भी रचना की है।

इनकी कविता में भाषा की सरलता तथा भाव की पूरी तौर पर स्पष्टता पाई जाती। प्रसाद-गुण भी अच्छा मि- लता है। स्वाभाविकता का तो पूर्ण विकास पाया जाता है। कोई-कोई छन्द तो इतने उत्तम और ललित बन पड़े हैं कि अच्छे-से-अच्छे कवियों के छन्दों से टक्कर लेते हैं इसका कुछ नमूना नीचे दिया जाता है --

जब श्रीकृष्णजी ने कूबरी के चक्कर में पड़कर व्रज को परित्याग कर दिया और गोपियों की शिकायत सुनकर विरह-विधुरा राधिका के सम्बोधन देने के लिए उद्धव को