पृष्ठ:रहीम-कवितावली.djvu/३२

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रहीम की कविता।

रहीम कहते हैं कि हाथी इसी अभिप्राय से पृथ्वी की घल टटोलटा फिरता है तथा उसे अपने सिर पर डालता कि जिस चरण-रज को पाकर मुनिपत्नी अहल्या का उद्धार हुआ था, शायद वही रज-कण कहीं धूल में मिल जायँ और उनको शीस पर रखने से उसका भी उद्धार हो जाय। रहीम की यह एक अनोखी सूझ है। शब्दों की सरलता और सहज उक्ति सराहनीय है।

कोई मीठी वस्तु खाने के बाद नमकीन चीज़ के लिये चित्त चटपटाने लगता है तथैव नमकीन के बाद मीठी चीज़ खाने को तबियत चाहने लगती है। इसीको रहीम ने बड़ी स्वाभाविकतया नेत्रों के सलोनेपन तथा अधरों की मिठास पर उत्तमता से घटित किया है। नेत्रों में स्वाभा- विक सलोनापन होता है। 'सलोने' शब्द के अन्दर सुन्दरता के प्रायः सभी विशेषण आजाते हैं। सलोनापन अथवा नम- कीनापन भी उसमें एक है। रहीम ने इसी भाव को यहाँपर मुख्य माना है। आँखों में नमकीनापन होता भी है। प्रस्वेद में क्षार पदार्थ मिला होता है इससे शरीर में उसका अस्तित्व सिद्ध होता है। आँखें शरीर का एक अंगही हैं। अस्तु उनमें भी नमकीनापन होना स्वाभाविक है। दूसरे अश्रु में भी क्षार पदार्थ मिला होता है। इससे भी नेत्रों में सलोनापन होना सिद्ध होता है। अधरों में मिठास होना प्रेमियों की अनोखी सूझ है। अधरामृत बार २ पीकर