रहीम-कवितावली। खर्च बढ़ो रोजी घटी, नृपति निठुर मन कान । रहिमन वे नर का करें, ज्यो थोरे जल मीन ॥ ३६॥ खीरा सिर ते काटिए, मलिए लोन लगाइ। रहिमन करुए मुखन को, चहियत यही सजाइ ॥ ४० ॥ खैर खून खाँसी खुली, बैर प्रीति मद पान । रहिमन दाबे ना द., जानत सकल जहान ॥ ४१॥ खैचि चढ़ान ढीली ढरनि, कहह कौन यह प्रीति । आजु काल्हि मोहन गही, बंस-दियों की रीति ॥ ४२ ॥ गगन चदै फिर क्यों ति, रहिमन बहरी बाज । फेरि आइ बंधन परै, पेट अधम के काज ॥४३॥ गरज आपनी श्राप सों, कही रहीम न जाइ । जैसे कुल को कुल-बधू. पर घर जात लजाइ ॥४४॥ गहि सरनागत राम की, भवसागर की नाव । रहिमन जगत-उधार कर, और न कळू उपाव ॥ ४५ ॥ गुन ते लेत रहीम जन, सलिल कूप ते काढ़ि। काहुँ ते कहुँ होत हैं, मन काहू के बाढ़ि ॥ ४६॥ गुरुता फरै रहीम कहि, फबि आई है जाहि । उर पर कुच नीके लगैं, अनत बतौरी आहि ॥४७॥ ४२-१-आकाश-दीप जिसे कार्तिक मास में बाँसों के सहारे से लोग अपने मकानों पर जलाते हैं। ४३-१-बाज की तरह का ही एक अन्य शिकारी पक्षी । ४५-१-उद्धार । ४६-१-रस्सो तथा गुण । ४७-१-रक्त-कम-विकार से पैदा हुआ मांस का भाग।
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