पृष्ठ:रहीम-कवितावली.djvu/६५

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रहीम-कवितावली।

नादे रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत ।
ते रहीम पसु ते अधिक, रीझेहु कछू न देत ॥ १०३ ॥
निज कर क्रिया रहीम कहि, सुधि भावी के हाथ।
पाँसे अपने हाथ में, दाँव न अपने हाथ ।। १०४ ॥*

नैन सलोने अधर मधु, कहु रहोम घटि कौन ।
मीठो भावै लौन पर, अरु मीठे पर लौन ॥ १०५॥
पन्नग-बेलि' पतिव्रता, रति-सम सुनहु सुजान ।
हिम रहीम बेली दही, सत योजन दहियान ॥ १० ॥

परि रहिबो मरिबो भलो, सहिबो कठिन कलेस ।
बामन ह्वै बलिको छल्यो, भलो दियो उपदेस ॥ १०6 ॥
पसरि पत्र झपहिं पितहिं, सकुाचे दत ससि सीत।
कहु रहीम कुल कमल को, को बैरी को मीत ॥ १०८ ॥

पात-पात को सींधियो, बरी-बरी को लौन ।
रहिमन ऐसी बुद्धि ते, काज सरैगो कौन ॥ १६ ॥
पाँच रूप पाण्डव भए, रथ-बाहक नलराज ।
दुरदिन परे रहीम कहि, बड़ेन किए घटि काज ॥ ११० ।।


१०३-१-ध्वनि ।

  • १०४-देखो दोहा नं० ८२.

१०६-१-पान की लता, २-दाह किया हुआ ।

१०८-१-झाँपते हैं। + १०9-तुलसीदासजी का एक दोहा भी ऐसाही है:-

पात-पात को सींचिबो, बरी-बरी को लौन ।
तुलसी खोटे चतुरपन, कलिदुह के कहु कौन ।।