पृष्ठ:रहीम-कवितावली.djvu/८२

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दोहे। सौदा करो सो करि चलो, रहिमन याही बाट। . फिरि सौदा पैही नहीं, दूरि जान है बाट ॥ २५० ।। * हरि रहीम ऐसी करी, ज्यों कमान सर पूर । बैंचि आपनी ओर को, डारि दियो पुनि दूर ॥ २५१ ॥ हित रहीम इतऊ करै, जाकी जहाँ बसात । ना यह रहै न वह रहै, रहै कहन को बात ॥ २५२ ॥ होत कृपा जो बड़ेन की, सो कदाचि घटि जाइ। तो रहीम मरिबो भलो, जाते दुख हटि जाइ ॥ २५३ ।। होइ न जाकी छाँह ढिग, फल रहीम अति दूर । बाढ़ेउ सो विन काज ही, जैसे तार खजूर ॥ २५४ ॥

  • २५०-एक और दोहा इसी भाव का 'बन्द' का है:-

या दुनिया में श्राइकै, छोड़ि देइ तू ऐंठ । लेना है सो लेइले, उठी जाति है पैंठ ॥ + २५३-इसी भाव का इनका दूसरा दोहा भी है। बड़माया को दोष यह, जो कबहूँ घटि जाइ । तौ रहीम मरिबो भलो, दुख सहि जियै बलाइ ।। देखो दोहा नं.११३..