पृष्ठ:रहीम-कवितावली.djvu/८६

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बरवै नायिका-भेद दोहा। कबित को दोहा कहो, तुल्यो न छप्पय छंद। बिरच्यो यहै विचारि कै, यह बरवै रस-कंद॥ १॥ बन्दना-बन्दी देवि सरदा, पद कर जोरि । ____ वरनौं काव्य बरैवा, लगह न खोरि ॥२॥ त्रिविध-स्वकीया । सुग्धा- लहरत लहर लहरिया, लहर बहार । मोतिन जरी किनरिया, वियुरे बार ॥३॥ लागौ श्रानि नवेलिअहि, मनसिज बान । • उकसन लागु उरोजवा, दिनतिरछान ॥ ४॥ मध्या- निसुदिन चाहन चाहत, श्री ब्रजराज । लाज जोरावरि है, बसि करत अकाज ॥५॥ रहत नैन के कोरवा, चितवनि छाय । चलत न पगु पैजनियाँ, मगु टहराय ॥ ६॥ १-१-मूल । २-१-शारदा-सरस्वती। ४-१-दृग-अाँखें।